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जिनविजय जीवन-कथा
७. इनका (अर्थात् वृद्धिसिंह व राज कुमारी का) किशनसिंह नाम का अतिप्रिय पुत्र था, जिस का माता ने (प्यार का) रणमल्ल ऐसा नाम रक्खा था।
८. इस रूपाहेली गाँव में देवी हँस नामक एक राज पूज्य यति रहते थे जो ज्योतिष-शास्त्र और वैद्यकीय विद्या के पारगामी होकर अत्यन्त जनप्रिय थे।
६. वे यतिश्वर बहुत से देशों में भ्रमण करते हुये भारवाड़ से रूपाहेली में आकर रहे थे, ये यतिश्वर अपने गुणों के कारण उक्त परमार वंशीय वृद्धिसिंह के बहुत ही प्रिति पात्र एवं श्रद्धा भाजन बन गये थे।
१०. उन देवी हँस यतिश्वर ने अत्यन्त प्रेम के साथ वृद्धिसिह के पुत्र किशनसिंह को अपने पास रक्खा भौर सुशिक्षा द्वारा जैन धर्म का अनुरागी बनाया।
११. दुर्भाग्य से उस बालक किशनसिंह की बाल्यावस्था में ही गुरु (देवी हँसजी) और पिता (वृद्धिसिंह) का स्वर्गवास हो जाने से वह बालक विमूढ़ होकर (अपने देश घर और कुटुम्ब से बिछुड़ कर) यदृच्छा से निकल पड़ा।
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