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संस्मरण लिखने का आद्य प्रसंग
श्री देवी हँसनामात्र राजपूज्यो यतीश्वरः । ज्योतिर्भैषज्यविद्यानां पारगामी जनप्रियः ||८|| अष्ठोत्तरशताब्दानामायुर्यस्य महामतेः 1 स चासीद् वृद्धिसिंहस्य प्रीतिश्रद्धास्पदं परम् ||६|| तेनाथाप्रतिमप्रेम्णा स तत्सूनुः स्वसन्निधौ । रक्षितः, शिक्षितः सम्यक् कृतो जैनमतानुगः ॥ १० ॥ दौर्भाग्यात् तच्छिशोर्बाल्ये गुरु-तातो दिवंगतौ । विमूढ़ेन ततस्तेन त्यक्तं सर्वं गृहादिकम् ॥११॥ ऊपर दिये गये संस्कृत श्लोकों का हिन्दी भावार्थ इस प्रकार है ।
१. स्वस्ति, भारत में मेदपाट अर्थात् मेवाड़ नाम का देश सुविरव्यात है उसमें रूपाली नाम का छोटा सा ग्राम अर्थात बस्ती है ।
२. इस रूपाली नामक बस्ती के नामक स्वामी थे । जो अपने सदाचार और नृपतियों के समान समझे जाते थे ।
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राठौड़ वंशीय श्री चतुरसिंह सुविचार के कारण प्राचीन
३. उस रूपाहेली में वृद्धिसिंह नामक एक कुलंवान् सुप्रसिद्ध राजपूत रहते थे जो परमार वंशीय कुल के अग्रणी एवं क्षात्र धर्म के धनी थे ।
४. जिस परमार नामक महान् राजकुल में मुन्ज और भोज जैसे महान् राजा हो गये हैं । उन के कुल में जन्म लेने वाले पुरुष के (अर्थात् श्री वृद्धिसिंह के) कुलीनत्व का क्या वर्णन किया जाय ।
५. उन वृद्धिसिंह के राजकुमारी नामक पत्नी थी । जो चातुर्य, रूप, लावण्य, सुवाणी और सौजन्य आदि गुणों से अलंकृत थी ।
६. जो क्षत्रियाणी की प्रभा से पूर्ण थी शौर्य से प्रदीप्त थी । जिसको देखते ही लोग राजन्यकुल में उत्पन्न होने वाली यह स्त्री है |
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और जिसकी मुखाकृति समझते थे कि किसी
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