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जिनविजय जीवन कथा
आपने बड़ी भारी योग्यता से लिखी है । यदि कोई साधारण पढ़ा हुआ मनुष्य भी उक्त दोनों पुस्तकों को मनोयोग पूर्वक पढ़ेगा तो वह पूर्ण इतिहासवेत्ता हो सकता है। इसलिये आपके चरण कमलों में पुन: धन्यवाद अर्पण करता हूँ।
आपकी मातृ भूमि वास्तव में राजस्थान (मेवाड़) होने पर भी गुजरात के दत्तक पुत्र होना स्वीकार कर लिया है, यह तो सर्वथा उचित है किन्तु इसके साथ ही भिल्लमाल, आबू पर्वत की संसार प्रसिद्ध अमूल्य निधि विमल शाह तथा वस्तुपाल तेजपाल के मंदिरों को भी जन्मभूमि से छिनकर वर्तमान निवास भूमि गुजरात में ले जाना ठीक नहीं है । क्योंकि किसी प्राचीन काल में उपर्युक्त स्थान गुजरात में अवश्य थे परन्तु अब तो कई शताब्दियों से राजस्थान का बहुमूल्य धन हैं। वास्तव में देखा जावे तो समस्त प्राचीन वस्तुएं एक भारत वर्ष की ही है । ___ आपकी कृपा से यहाँ सब प्रसन्न हैं, केवल महादुभिक्ष का प्रबल प्रकोप है । आपको भेजी हुई सब पुस्तकों का अक्लोकन करने के पश्चात् फिर पत्र सेबा में अर्पण करूँगा।
यद्यपि साद्यन्त पुस्तकें तो ऊपर लिखी उनको ही देख पाया हूँ, परन्तु हिन्दी भाषा के प्रस्तावना तो प्रायः सभी ग्रंथों का देख लिया है। इसके अतिरिक्त आपकी संस्कृत प्रशस्तियाँ, पूज्यवर देवीहंस जी महाराज तथा मेवाड़ के ग्रंथ समर्पण आदि श्लोक भी सब देख लिये हैं। श्रीमानों ने अपनी जन्मभूमि के साथ इस तुच्छ वृद्ध शरीर का नाम भी अमर कर दिया है। "प्रबन्ध चिन्तामणि" के प्रस्तावना से आपके जीवन चरित्र देशाटन, विद्याभ्यास आदि पर भी पूर्ण प्रकाश पड़ता है। मेरे योग्य सेवा कार्य लिखते रहें ॥इति।।
श्री मानों का आज्ञाकारी एवं कृपाभिलाषी ठाः चतुरसिंह वर्मा, रूपाहेली, · (मेवाड़) पो. रूपाहेली।
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