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________________ श्री चतुरसिंह जी राठोड़ के कुछ पत्र [१८१ पत्रांक ४ ता: ५-१-१९४० आपको हमारा वंश परिचय पूर्ण रूप से नहीं होगा, इसलिये अत्यन्त संक्षिप्त रूप से नीचे लिखा जाता है। जोधपुर राजधानी के निर्माता राव जोधाजी राठौड़ के 14 राजकुमार थे । उनमें से चौथे कुमार दूदाजी व छठे बीकाजी बड़े बलवान थे । दूदा जी ने मेड़ता विजय कर स्वतन्त्र राज्य स्थापित किया, और बीका जी ने बीकानेर । फिर दूदा जी के राव बीरमदेव जी और उनके जेष्ठ पुत्र भारत प्रसिद्ध राव जयमल्ल जी मेड़ता राज्य के स्वामी हुये । जयमल जी के पिता चित्तौड़ प्रसिद्ध राणा साँगा जी की भगिनी ब्याहे थे और मेड़ता नरेश जयमल जी की जेष्ठ बहिन जगत्प्रसिद्ध श्रीमती मीरा बाई को महाराणा सांगा जी के मुख्य युवराज भोजराज जी को ब्याही थी। इसलिये संबन्धों के कारण मेड़ता नरेश मेवाड़ के समस्त संग्रामों में सहायता देते रहे । जब सम्राट अकबर ने विक्रम संवत् 1624 में चित्तौड़ पर विशाल सेना से चढ़ाई की तब महाराणा उदयसिंह जी ने तो सकुटुम्ब विकट पर्वतों का आश्रय लिया और मेड़ता नरेश राव जयमल्ल को चित्तौड़ दुर्ग का मुख्य सेनापति और अपना प्रतिनिधि बना गये । अकबर के अनेक प्रलोभन देने पर भी दुर्ग नहीं सौंपा। अन्त में सवा छः मास घोर समर करके हजारों वीरों सहित गढ़ के द्वार खोलकर सैकड़ों राज महिलाओं को चित्ता में भस्म करके हजारों शत्रुओं को मारकर के वीर गति प्राप्त की। उक्त वृत्तान्त आपने अनेक इतिहासों में देखा ही होगा । उनकी असाधारण वीरता और स्वदेश भक्ति आदि पर मोहित होकर मुगल सम्राट ने आगरा दुर्ग के मुख्य द्वार पर राव जयमल्ल व राव पत्ता की गजारुढ़ वीर प्रतिमाएं स्थापित की। फिर शाहजहां ने दिल्ली दुर्ग बनाकर राजधानी वनाई तो वही वीर मूर्तियाँ यत्न से मंगवाकर देहली के राज द्वार पर लगाई। उसका अनुकरण करके नेपाल, माण्डू, बीकानेर आदि कई राज्यों ने उक्त वीरों की गजा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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