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________________ १८०] जिनविजय जीवन-कथा वासी हो गये हैं । यह भयानक आघात मेरे वृद्ध शरीर पर बड़ा ही विकट हुआ। परन्तु जगदीश्वर की महान बलवान इच्छा पर किसी का वश नहीं चलता है। यों तो मेरे चार पुत्र और तीन पुत्रियों की संतति अर्थात पुत्र-पुत्रियाँ पौत्र, पौत्रीयां, दोहित्र, दोहिशीयाँ, प्रदोहित्र, प्रदोहित्रीयाँ आदि मिलाकर 60 से अधिक विद्यमान होगा। परन्तु दोनों पुत्रों का संताप असह्य था तथापि संसार का ऐसा ही अचल नियम है । अब पत्र के अन्त में उपर्युक्त दोनों निवेदनों का पुनः स्मरण दिलाया जाता है । अर्थात् एक तो मेरे जीवन काल में आपकी जन्मभूमि में अवश्य मेव पधारिये और द्वितीय आपकी रची हुई अनेक पुस्तकों में से 2-3 उत्तम ऐतिहासिक ग्रंथ तत्काल ही भेज देने की कृपा करें साथ ही कृपा पत्र भी प्रदान करावें। वर्तमान वर्ष में हमारे मेदपाट देश तथा प्रायः समग्र राजस्थान में महा दुःभिक्ष का भयानक प्रकोप है । अधिकतर ग्राम निर्जन पड़े हैं । विदेशों में गरीब जनता व पशु चले गये । वि. सं. 1956 के समान ही यह 96 का साल बड़ी हानि पहुँचावेगा । ईश्वरेच्छाबलियसि इत्यलम् । (विशेष टिप्पणी) मेरे योग्य सेवा कार्य सदा लिखाते रहे । यह निवेदन पा स्वयं मैंने हाथों से लिखा है । यद्यपि वृद्धावस्था से मन्द दृष्टि आदि के उपरांत वर्तमान तीव्र ज्वर की निर्बलता से यह पा दो दिन में पूर्ण हुआ है। परन्तु आपके समान गुरु वर्य की दया से उत्साहित होकर किसी लेखक की सहायता नहीं ली गई है । इसलिये निवेदन पत्र में कोई त्रुटि रह गई हो तो कृपया क्षमा प्रदान करें और उत्तर भी लिखावें । वि. सं. 1996 पोष कृष्णा 10 गुरे । ताः 4 जनवरी, सन् 1940 ईस्वी । भवदीय चरणसरोरुहों का विनित सेवक एवं उत्तराभिलाशी क्षत्रिय राष्ट्रकूट कुलोद्भव ठाकुर चतुरसिंह वर्मा राज. रूपाहेली, मेवाड़ (राजपूताना) पो. आ. रूपाहेली खुद और बी. बी. एण्ड सी. आई-रेल्वे स्टेशन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
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