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श्री चतुरसिंह जी राठौड़ के कुछ पत्र [१७१ तरह मिलना हुमा । उन दिनों ठाकुर साहब काफी वृद्ध हो चुके थे और शरीर भी उनका बहुत थका हुआ था।
उसके बाद सन् १९४२ में उनका स्वर्गवास हो गया।
ठाकुर साहब चतुर सिंह जी एक बड़े सज्जन और साधु चरित पुरुष थे वे बहुत ही सदाचारी और विद्यानुरागी थे। राजस्थान के अनेक विद्वानों के साथ उनका घनिष्ठ परिचय रहा। इतिहास विषय पर उनकी बहुत अधिक रुचि थी और इस विषय की पुस्तकें आदि वे सदा पढ़ते रहते थे।
मेरा जो विशेष सम्बन्ध उनसे रहा और मुझ पर जो उनका विशिष्ठ अनुराग रहा वह भी मुख्य करके इस इतिहास विषयक रुचि का ही परिणाम था । मेरी लिखी हुई पुस्तकें पढ़कर उनकी यह रुचि बढ़ी थी, उनकी इस रुचि का आभास उनके लिखे गये इन पत्रों में से मिलता है।
पत्रांक १
रूपाहेली (मेवाड़) ता: २५-२-१६२३
श्रीमान परम पूज्य भारत भूषण मुनिराज जिन विजया चार्य जी के चरण कमलों में
अशशंतत्रास्तु आपका कृपा पत्र तथा तीन पुस्तकें और (बीरबर) कल्ला का उपन्यास मिला, उसकी पहुँच उसी समय लिखता, परन्तु कुछ तो मेरे कनिष्ट पुश के कुछ रोग हो गया था और मुख्य कारण यह कि आपकी प्रदान की हुई पुस्तकों को पढ़कर उसका धन्यवाद भी साथ ही अर्पण करूं। इसी कारण विलम्ब हुआ सो क्षमा करें।
आपकी प्रदान की हुई तीनों पुस्तकें साद्यन्त पढ़ ली हैं । अब गुर्जर अक्षर और भाषा का ज्ञान भी मुझको ठीक हो गया है। केवल कोई. कोई अपरिचित शब्द समझने में कठिनाई पड़ती है ।
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