SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३०] जिनविजय जीवन-कथा तुम्हारे पास कोई कुर्ता और अंगोछा हो तो वह मुझे पहनने को दे देना । फिर गाड़ी में बैठकर रतलाम चल देना है । सेवक जी के मन में यह बात ठीक लगी और उन्होंने वैसा करने में अपनी सम्मति बताई उस रात तक उस मठ में भी कई लोग आते जाते दिखाई दिए। उन साधु, संतों में भी सारी रात किसी न किसी तरह की गपशप चलती रही। ____मैं और सेवक जी सवेरे चार बजे ही मठ में से निकल पड़े। मैंने वह कम्बल और चीमटा लपेटकर, बगल में दबा लिया तथा कमंडलु हाथ में ले लिया। क्षिप्रा नदी पास ही में बह रही थी। नवरात्री के दिन थे इसलिए बहुत से स्त्री-पुरुष जल्दी सवेरे वहां स्नान करने चले प्राते थे । एक किनारे बैठकर मैंने तथा सेवक जी ने स्नान किया । खूब अच्छी तरह शरीर मलकर मैंने उस भभूति का विसर्जन किया। रात्री को पहनने के लिए जो पुरानी, फटी कफनी मेरे पास थी उसको तथा लंगोट को नदी में बहा दिया, उसके साथ वह चीमटा और कमंडलु भी क्षिप्रा के प्रवाह को समर्पण कर दिया। जल्दी से सेवक जी ने जो अंगोछा दिया था उससे शरीर पोंछ लिया और फिर उसी को कमर पर लपेट लिया । एक पुराना सा धोया हुमा कुर्ता सेवकजी के पास था उसे पहन कर फिर मैं उसी तरह पुराना किशनलाल बन गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001967
Book TitleJinvijay Jivan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherMahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada
Publication Year1971
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy