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जिनविजय जीवन-कथा मुझे अनुभव हुआ कि खाखी महाराज स्वभाव से शांत हैं। वे ज्यादह बोलते नहीं अपने पास आने वाले भक्तों से भी कोई विशेष बात चीत नहीं करते । लोगों की उनके विषय में श्रद्धा थी कि वे कोई सिद्ध पुरुष हैं। उनके आशीर्वाद से भक्तों की कुछ कामनाएं पूरी हो जाती है। अतः लोग उनका आशीर्वाद लेने हमेशा आते रहते थे, और बदले में उनको यथा शक्ति रुपया-पैसा भेंट करते रहते थे । मुझे यह भी अनुभव हुआ कि खाखी महाराज स्वभाव से बहुत लोभी थे। पैसे-पैसे का उन्हें ख्याल रहता था । कौन भक्त किस समय क्या भेंट कर गया है इस पर उनकी पूरी नजर रहती थी। और उन पैसे टकों को निरंतर संभालते रहते थे। वे कभी किसी को प्रसन्न होकर कुछ रुपया पैसा बक्षिस कर देते थे। उनकी जमात में बाहर से कई साधु-संत, बाबा, जोगी आकर मिलते रहते थे और कितने कुछ दिन उनके साथ रहकर फिर कहीं अन्यत्र चले जाते थे। उन आगन्तुक साधु-संतों को भोजन के सिवाय अन्य किसी प्रकार की आर्थिक सहायता उनकी तरफ से नहीं दी जाती थी । वे न आगन्तुक साधु-संत कई तरह के होते थे। लंगोट धारी खाखी स्वांग वालों के अतिरिक्त वस्त्रधारी भी कई बाबा, बैरागी, साधु, सन्यासी वगैरह होते थे। जैसा कि ऊपर सूचित किया है। इस वर्ग में स्त्रियां भी होती थी। ये आगन्तुक इस आशा से इनकी जमात में आते रहते थे कि खाखी बाबा शिवानन्द भैरव बड़े महन्त हैं और इनको भक्तों की ओर से काफी धन मिलता रहता है, अतः इनके पास कुछ दिन रहने से जाते समय कुछ रुपया-पैसा या कपड़ा लत्ता बक्षिस रूप में मिल जाय । परन्तु खाखी बाबा की ओर से ऐसा कुछ उनको नहीं दिया जाता था, इसलिए वे आगन्तुक जन प्रसन्न होकर नहीं जाते थे,
और लोगों के सामने बाबाजी की लोभी वृत्ति के बारे में ऐसी-वैसी बातें करते रहते थे।
बाबाजी अपने साथ वाले शिष्यों के बारे में भी कोई खास दिल चस्पी नहीं लेते थे। यद्यपि शिष्यों को पढ़ाने के निमित एक मामूली पंडित उन्होंने अवश्य रख छोड़ा था। परन्तु वह किसको क्या पढ़ाता
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