SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॐ सम्पादकीय श्रीत्रिपुराभारतीस्तवः' आचार्य श्रीसोमतिलकसूरिजी कृत ज्ञानदीपिका व्याख्या और अज्ञातकर्तृक पञ्जिकावृत्ति के साथ प्रकाशित हो रहा है । पं० श्री लक्ष्मणदत्त शास्त्री कृत ज्ञानदीपिका व्याख्या का हिन्दी अनुवाद भी इसमें सामिल है । यह कृति पहले 'लघुस्तवराजः ' इस नाम से प्रकाशित हुई है (प्रका० क्षेमराज कृष्णदास, मुंबई, सं० १९७०) साक्षर श्री जिनविजयजी के सम्पादन में ज्ञानदीपिका, और पञ्जिका व्याख्या के साथ 'त्रिपुराभारतीलघुस्तवः ' के नाम से प्रकाशित हुई है ( प्रका० राजस्थान पुरातत्त्व मंदिर जयपुर) इन दोनो मुद्रित पुस्तको के आधार पर और आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा से प्राप्त हस्तलिखित प्रत ( लि० सं० १६८४, जोधपुर) के आधार पर प्रस्तुत सम्पादन सम्पन्न हुआ है । 4 पुराने सम्पादन की मुद्रणादिगत अशुद्धिओं का सम्मार्जन इस सम्पादन में किया है । हस्तलिखित प्रत के आधार पर पाठ संशोधन युवामनीषी मुनिप्रवर श्री मोक्षरति विजयजी म. सा. ने किया है। विद्ववर्य मुनिप्रवरश्री धुरंधरविजयजी म० सा० ने संक्षिप्त प्रवेश लिखकर प्रस्तुत संपादन का गौरव बढ़ाया है । पं० श्री अमृतभाई पटेल का भी प्रस्तुत सम्पादन में प्रदान है । श्रीजिनविजयजी द्वारा सम्पादित आवृत्ति के पाठ भेद 'जि०' संज्ञा से उद्धृत किये है । अन्त में, यह स्तोत्र तन्त्रमूलक है । इसको पुरानी आवृत्ति अति जीर्णावस्था में थी । उसका नाश न हो यही एक शुभभावना से यह सम्पादन संपन्न हुआ है । ग्रन्थ में वर्णित सामग्री का गैर- उपयोग करने वाला साधक सिर्फ अपने संसार की वृद्धि करेगा । 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001966
Book TitleTripurabharatistav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2008
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy