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________________ के शिरोहीजिले का अजारी गाँव जिसका प्राचीन नाम अजाहरी था उसके निकटवर्ती छोटी पहाडीयों के बीच मार्कंडेश्वर महादेव के निकट है । दूर सूदूर तक फैले हुए खजूरी के सहस्र पैडों के मध्य छोटी पहाडीयों के घेरावे में बहते दो-तीन झरणों के संगम से बने हुए द्रहके तटपर पुराणे छोटे मंदिर में माँ त्रिपुराभारती की अत्यंत प्राचीन श्याम मनोहर मूर्ति आसीन है । जो भव्य एवं अत्यंत प्रभावशाली है । लघुकवि इसी शक्तिपीठका अधिष्ठाता था । भगवती त्रिपुराभारती का शक्तिपीठ यह संगम स्थल है। पूरी अजारी गाँव की भूमि उसके प्रभाव क्षेत्र में है। तरुण हेमचन्द्र मुनि को माँ सरस्वती ने अजारी ग्रामस्थित महावीरचैत्य में प्रगट होकर वरदान दिया था । इस स्थल पर शताब्दीयों से जैन अजैन साधकोने साधना कर सिद्धि प्राप्त की । आज भी पा रहे है। ऐसी एक प्रबल परंपरा है कि माँ शारदा आठ मास कश्मीर में रहती है। वर्षा ऋतु में चार मास अजारी क्षेत्र में रहती है। दीपावली में यहाँ साधना करने से दिव्य अनुभव होता है । यह क्षेत्र अत्यंत उर्जासंपन्न एवं सातिशायी है । अनेक मूकबधिर वाचाहीन व्यक्ति अजारी क्षेत्र में माँ सरस्वती की मिन्नत कर वाक्पीडा से प्रायशः मुक्ति पाते है । मिन्नत में माँ को चाँदी की जीभ चडाई जाती है। माँ सरस्वती की साधना में जप एवं दशांश होम दोनों के योग से ही पूरी सफलता मिलती है । आचार्य बप्पभट्टसूरि एवं आचार्य मल्लिषेणसूरि के सरस्वतीकल्प में यह विधान स्पष्ट मिलता है । मंत्र एवं भौतिक द्रव्यों के द्वारा अभौतिकशक्ति को उजागर करना यही तंत्र है । कलियुग में तन्त्र ही सद्यः फलप्रद है। औदारिक एवं कार्मण की शक्ति को तैजस में उजागर कर, इडा और पिंगला में बहती प्राणधारा को सुषुम्णा में सम्मिलित कर माँ त्रिपुराभारती की सिद्ध होती है । हमें यह प्राप्त हो यही कामना... जैन सोसायटी पो०शु० १० २०५९ मुनि धुरंधरविजय 40 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001966
Book TitleTripurabharatistav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2008
Total Pages122
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size6 MB
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