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शैव दर्शन में 'अनुग्रहकरण' कृत्य की अवधारणा विशिष्ट है । जीवात्मा पाशमुक्त बन के शिवस्वरूप ईश्वरानुग्रह से ही हो सकता है । मुक्तात्मा-अनंतादि आठ विद्येश्वर के शिवत्व में भी ईशानुग्रह कारण है ।
ईश्वर जीवात्मा को मन्त्र और मन्त्रेश्वर पदवी प्रदान करता है। (मन्त्रेश्वर = मन्त्र पदवी की पात्रता प्राप्त करने वाले जीवविशेष ।)
___ मलादि पाशों का परिपाक हो जाने पर जीवात्माकी क्रिया शक्ति का आच्छादन करने वाली रोधशक्ति का विनाश होता है । जिस जीवात्मा की आच्छादन शक्ति को रोध हो गया है वह मोक्षाधिकारी है । मोक्षाधिकारी जीव को परमेश्वर स्वयं गुरु मूर्ति में अधिष्ठान करके दीक्षा और मोक्ष का दान करता ।
इस प्रकार शैवदर्शन की ईश्वर सम्बन्धी संकल्पना इतर दर्शन से नितांत भिन्न प्रतीत होती है । इस संकल्पना का दार्शनिक जगत पर गहरा प्रभाव है।
पशु : - शैवमत में द्वितीय पदार्थ 'पशु' है । पाश से बद्ध जीवात्मा की 'पशु' संज्ञा है । जीवात्मा को 'पशु' शब्द से संबोधित करने का रहस्य यह है कि . पशु और जीव के गुणधर्म समान है । श्वान वि० पशु जिस तरह अपने मालिक मनुष्य की इच्छा के आधीन होते है, उसी तरह जीवात्मा परमेश्वर के आधीन है । इसलिए वे पशु है । महेश्वर उनका पति है, मालिक है । मनुष्य की अपेक्षा गाय वि० पशुगण अल्पज्ञानी है इसलिये पशु है, वैसे ही
१. मुक्तात्मानोऽपि शिवः किन्त्वेते यत्प्रसादतो मुक्ताः स० टी० ।।
२. शतमष्टादश तेषां कुरुते स्वयमेव मन्त्रेशान् । टी० मण्डल्यादयोऽष्टादशाधिक शतसङ्ख्या मन्त्रेश्वरा जीवविशेषाः ।।
३. तत्परिपाकाधिक्यानुरोधेन शक्त्युपसंहारेण दीक्षाकरणेन मोक्षप्रदो भवत्याचार्य मूर्तिमास्थाय परमेश्वरः ।
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