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________________ ( ४१ ) संबंध में शंकराचार्य के विवर्तवाद के स्थान पर प्राचीन परिणामवाद का समर्थन किया। और उसके पश्चात् रामानुजाचार्य आदि अन्य आचार्यों ने भी उसी का अनुसरण किया। (३) रामानुजाचार्य का विशिष्टाद्वैत वाद रामानुज के मतानुसार परमात्मा ब्रह्म कारण भी है और कार्य भी। सूक्ष्म चित् तथा अचित् से विशिष्ट ब्रह्म कारण है और स्थूल चित् तथा अचित् से विशिष्ट ब्रह्म कार्य है। इन दोनों विशिष्टों का ऐक्य स्वीकृत करने के कारण रामानुज का मत 'विशिष्टाद्वैत' कहलाता है। कारणरूप ब्रह्म परमात्मा के सूक्ष्मचिद्रूप के विविध स्थूल परिणाम ही अनेक जीव हैं और परमात्मा का सूक्ष्म अचिद्रूप स्थूल जगत् के रूप में परिणत होता है। रामानुज के अनुसार जीव अनेक हैं, नित्य हैं और अणुपरिमाण हैं। जीव और जगत् दोनों ही परमात्मा के कार्य-परिणाम हैं, अतः वे मिथ्या नहीं प्रत्युत सत्य हैं। मुक्ति में जीव परमात्मा के समान होकर उसके ही निकट रहता है। रामानुज की मान्यता है कि जीव और परमात्मा दोनों पृथक् हैं, एक कारण है और दूसरा कार्य, किंतु कार्य कारण का ही परिणाम है अतः इन दोनों में अद्वैत है। (४) निम्बार्क सम्मत द्वैताद्वैत-भेदाभेदवाद ___ आचार्य निम्बार्क के मत में परमात्मा के दो स्वरूप हैं, चित् और अचित् । ये दोनों ही परमात्मा से भिन्न भी हैं और अभिन्न भी। जिस प्रकार वृक्ष और उसके पत्र, दीपक और उसके प्रकाश में भेदाभेद है, उसी प्रकार परमात्मा में भी चित् और अधित् इन दोनों का भेदाभेद है। जगत् सत्य है क्योंकि यह परमात्मा की शक्ति का परिणाम है। जीव परमात्मा का अंश है और अंश तथा अंशी में भेदाभेद होता है। ऐसे जीव अनेक हैं, नित्य है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001965
Book TitleAtmamimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras
Publication Year1953
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Epistemology, & Religion
File Size8 MB
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