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________________ ( १३६ ) की कोई सीमा नही। किन्तु एक बात की सभी में समानता है और वह है उनकी परोपकार वृत्ति । मगर यह वृत्ति आर्यों के लिए ही स्वीकार की गई है, दास या दस्युओं के विषय में नहीं। देवता यज्ञ करने वाले को सभी प्रकार की भौतिक संपत्ति देने में समर्थ हैं, वे समस्त विश्व के नियामक हैं और अच्छे व बुरे कामों पर दृष्टि रखने वाले हैं। किसी भी मनुष्य में यह शक्ति नहीं कि वह देवताओं की आज्ञा का उल्लंघन कर सके। जब उनके नाम से यज्ञ किया जाता है, तब वे धुलोक से रथ पर चड़ कर चलते हैं और यज्ञ भूमि में आकर बैठते हैं। अधिकांश देवों का निवास स्थान द्युलोक है और वे वहां सामान्यतः मिल जुल कर रहते हैं । वे सोमरस पीते हैं और मनुष्यों जैसा आहार करते हैं । जो यज्ञ करते हैं, वे उनकी सहानुभूति प्राप्त करते हैं। जो व्यक्ति यज्ञ नहीं करते, वे उनके तिरस्कार के पात्र बनते हैं। देवता नीति संपन्न हैं, सत्यशील हैं, वे धोका नहीं देते। वे प्रमाणिक और चरित्रवान् मनुष्यों की रक्षा करते हैं। उदार और पुण्य शील व्यक्ति और उनके कृत्यों का बदला चुकाते हैं और पापी को दंड देते हैं। देव जिस व्यक्ति के मित्र बन जाएं, उसे कोई भी हानि नहीं पहुंचा सकता। देवता अपने भक्तों के शत्रुओं का नाश कर उनकी संपत्ति अपने भक्तों को सौंप देते है। सभी देवों में सौन्दर्य, तेज और शक्ति है। सामान्यतः देव स्वयं ही अपने अधिपति हैं अर्थात् वे अहमिन्द्र हैं। ___ यद्यपि ऋषियों ने देवों के वर्णन में अतिशयोक्ति से काम लेते हुए वर्णित देव को सर्वाधिपति कहा है, तथापि सामान्यतः उसका अर्थ यह नहीं कि वह देव, राजा के समान अन्य देवों का अधिपति है। ऋषियों ने जिस देव की स्तुति की है, वह उसे प्रसन्न करने के लिए है। अतः यह स्वाभाविक है कि उसके अधिक से अधिक गुणों का वर्णन किया जाए। अतः प्रत्येक देव में सर्वसामर्थ्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001965
Book TitleAtmamimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras
Publication Year1953
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Epistemology, & Religion
File Size8 MB
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