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________________ कराए, यज्ञ करे या कराए, तो इसमें कुछ भी पुण्य नहीं होता।' जैन सूत्रकृतांगर में भी अक्रियावाद का ऐसा ही वर्णन है । पूरण का यह अक्रियावाद भी नियतिवाद के तुल्य है। अज्ञानवादी __ हम संजय बेलट्ठीपुत्र के मत को न तो नास्तिक कह सकते हैं और नही उसे आस्तिक कोटि में रखा जा सकता है। वस्तुतः उसे तार्किक श्रेणी में रखना चाहिए। उसने परलोक, देव, नारक, कर्म, निर्वाण जैसे अदृश्य पदार्थों के विषय में स्पष्टरूप से घोषणा की कि इनके संबंध में विधिरूप, निषेध रूप, उभय रूप अथवा अनुभय रूप निर्णन करना शक्य ही नहीं ।3 जिस समय ऐसे अदृश्य पदार्थों के विषय में अनेक कल्पनाओं का साम्राज्य स्थापित हो रहा हो, तब एक ओर नास्तिक उनका निषेध करते हैं और दूसरी ओर विचारशील पुरुष दोनों पक्षों के बलाबल पर विचार करने में तत्पर हो जाते हैं। इस विचारणा की एक भूमिका ऐसी भी होती है जहां मनुष्य किसी बात को निश्चत रूप से मानने अथवा प्रतिपादित करने में समर्थ नहीं होता। उस समय या तो वह संशयवादी बन कर प्रत्येक विषय में सन्देह करने लग जाता है अथवा वह अज्ञानवाद की ओर झुक जाता है और कहने लगता है कि सभी पदार्थों का ज्ञान संभव ही नहीं। ऐसे अज्ञानवादियों के विषय में जैनागमों में कहा है कि ये अज्ञानवादी तर्ककुशल होते हैं परन्तु असंबद्ध प्रलाप करते हैं, उनकी अपनी १ बुद्धचरित पृ० १७०, दीघनिकाय सामञफलसुत्त । - २ सूत्रकृतांग १. १. १. १३ । 3 बुद्ध चरित पृ० १७८, इस मत के विरुद्ध भगवान् महावीर ने स्याद्वाद की योजना द्वारा वस्तु का अनेक रूपेण वर्णन किया। न्यायावतारवातिकवृत्ति की प्रस्तावना देखें-पृ० ३९ से आगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001965
Book TitleAtmamimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJain Sanskruti Sanshodhan Mandal Banaras
Publication Year1953
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Epistemology, & Religion
File Size8 MB
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