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________________ संग्रहालयों में कलाकृतियाँ [भाग 10 मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं जिनसे प्रकट है कि खजुराहो में मंदिरों की संख्या उससे अधिक थी जितनी वह आज है (द्रष्टव्य अध्याय २२)। जैन मंदिर-समूह के प्राकार में भीतर की ओर तीन सौ से अधिक मूर्तियाँ और स्थापत्य संबंधी अवशेष जड़ दिये गये है (चित्र ३७५), जो एक प्रस्तावित संग्रहालय में प्रदर्शित किये जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इनके अतिरिक्त, कुछ जैन कलावशेष खजुराहो के पुरातत्त्व संग्रहालय में भी प्रदर्शित हैं, जिसकी स्थापना १९६७ में उस सामग्री के लिए की गयी थी जो उसके पूर्व एक मुक्ताकाश संग्रहालय में संग्रहीत थी। इन दोनों संग्रहालयों के अपेक्षाकृत अधिक महवत्त्पूर्ण कलावशेषों का यहाँ एक सर्वेक्षण प्रस्तुत है । यहाँ प्रथम संग्रहालय को जैन संग्रह और द्वितीय को खजराहो संग्रहालय नाम दिया जायेगा। तीर्थंकर-मूर्तियाँ : तीर्थंकरों की मूर्तियों में अधिकतर ऋषभनाथ की हैं और उनमें भी अधिक उल्लेखनीय वे हैं जो आसीन-मुदा में हैं। उनमें सबसे बड़ी घण्टाई-मंदिर के निकट प्राप्त हुई थी और अब खजुराहो-संग्रहालय में (१६६७) है। उसके उच्च सिंहासन के एक कोण पर 'घण्टाई' शब्द उत्कीर्ण है और मध्य में धर्म-चक्र का अंकन है जिसके दायें एक सिंह और यक्ष गोमुख तथा बायें भी एक सिंह और यक्षी चक्रेश्वरी है । सुंदर पादपीठ पर नवग्रहों की प्रस्तुति है जो सूर्य से प्रारंभ होती है। तीर्थंकर की चारों ओर यथास्थान चमरधारी इंद्र, गज, व्याल, मकर आदि का आलेखन है। ऋषभनाथ की कलात्मक ढंग से काढ़ी गयी केश-राशि की कुछ लटें उनके कंधों पर आ गयी हैं। ऋषभनाथ की एक अन्य आसीन मूर्ति जैन संग्रह ( १०३) में है, उसके पादपीठ पर भी गोमुख और चक्रेश्वरी हैं। चक्रेश्वरी अपने वाहन गरुड पर ललित-मुद्रा में पासीन है, उसके ऊपर के हाथों में गदा और शंख है तथा नीचे का एक हाथ वरद-मुद्रा में है और दूसरे में शंख है । पादपीठ पर एक ककुमान वृषभ की एक ओर एक पुरुष और दूसरी ओर एक महिला का आलेखन है जो निश्चित रूप से उस मूर्ति के निर्माता-दंपति हैं। त्रिभंग-मुद्रा में खड़े इंद्रों के हाथों में कमल है पर चमर नहीं जो साधारणत: होने चाहिए। उनके ऊपर, भामण्डल के दोनों ओर एक-एक गतिमान गज कलश धारण किये और एक-एक अोर विद्याधर-युगल माला धारण किये अंकित हैं। इनके ऊपर मालाएँ और छत्र धारण किये दो-दो गंधर्व हैं, जिनके ऊपर सूची, आमलक और कलश हैं। उद्घोषकों के दोनों ओर गंधर्व-कन्याएँ हाथों में वीणा धारण किये अंकित हैं। इसी संग्रह की दो और मूर्तियाँ (८ और २७) उल्लेखनीय हैं, यद्यपि वे खण्डित हैं । ऐसी ही तीन और मूर्तियाँ (१६१२, १७१२, १६४२) खजुराहो संग्रहालय में हैं जो मध्यकालीन कला का प्रतिनिधित्व करती हैं। इसी संग्रहालय में ऋषभनाथ की जो सर्वाधिक सुंदर मूर्ति (१८३०, चित्र ३७६ क) है उसका सिंहासन गहराई तक उत्कीर्ण है ओर उसपर तीर्थकर पासीन-मुद्रा में विराजमान है और उसके कीति-मुख से एक माला लटक रही है। भामण्डल सात वृत्ताकारों से आलिखित है। कीर्ति-मुख से लटकती माला से छूता हुआ एक अश्वारोही अंकित है। मस्तक पर कमल के ऊपर छत्र है। तीनों विद्याधर मेघमाला में उड़ते हुए दिखाये गये हैं। पार्श्वनाथ की एक उल्लेखनीय मूर्ति (चित्र ३७६ख) प्रस्तुत लेखक को घण्टाई-मंदिर के समीप एक खेत में १९६६-६७ में प्राप्त हई थी जो अब जैन संग्रह (१००) में है। लांछन सर्प की पूंछ 612 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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