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________________ संग्रहालयों में कलाकृतियाँ [ भाग 10 अस्पष्ट हैं । लाल कैमूर बलुए पत्थर की द्वि-मूर्तिका (२५५७, ऊंचाई १.३८ मी०) पर अजितनाथ और संभवनाथ (चित्र ३७३ ख) अंकित हैं जबकि श्वेत बलुए पत्थर से निर्मित द्वि-मूर्तिकाओं में ऋषभनाथ और अजितनाथ पुष्पदंत और शीतलनाथ, धर्मनाथ और शांतिनाथ तथा मल्लिनाथ और मुनि सुव्रतनाथ (प्रत्येक की ऊंचाई १.०७ मी.) अंकित हैं। इन समस्त प्रतिमाओं में तीर्थंकरों के ऊपर तिहरे छत्र, भामण्डल, उड़ते हुए विद्याधर, इंद्र तथा तीर्थंकरों के यक्ष-यक्षी आदि अंकित हैं। दो अन्य द्वि-मतिका प्रतिमाएं (२६०५ तथा २६१०) बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गयी हैं। इन प्रतिमाओं के आधार पर यह अनुमान गलत न होगा कि कारीतलाई स्थित जैन मंदिर में संभवतः समस्त चौबीसों तीर्थंकरों की द्वि-मूर्तिका प्रतिमाएं स्थापित रही होंगी। इन द्वि-मूर्तिकाओं के अतिरिक्त संग्रहालय में एक ऐसी प्रतिमा का खण्ड (२५६५; चौड़ाई ६१ सें. मी.) भी है जो संभवतः त्रि-मूर्तिका प्रतिमा का ऊपरी भाग है जिसपर तीन अचिह्नित तीर्थंकर कायोत्सर्ग-मद्रा में अंकित हैं। सर्वतोभद्रिका : एक चौमुख प्रतिमा (२५५५; ऊँचाई ६८.५ सें.मी.) में चारों सतहों पर पद्मासन तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं (चित्र ३७४ क)। इनमें से पार्श्वनाथ को उनके नाग-फण छत्र के आधार पर पहचाना जा सकता है। शेष तीर्थकर संभवतः ऋषभनाथ, नेमिनाथ तथा महावीर हो सकते हैं। सहस्रकट : संग्रहालय में चार सहस्रकूट प्रतिमाएं हैं जिनमें से सबसे ऊँची प्रतिमा (२५१९; ऊँचाई ८६ सें. मी.) पर सात सतहों में एक सौ साठ तीर्थंकर-प्रतिमाएँ हैं। दूसरे सहस्रकट (२५३७; ऊँचाई ७६ सें. मी.) पर छह सतहों पर एक सौ चवालीस तीर्थंकर-प्रतिमाएँ हैं। शेष दोनों सहस्रकूटों (२५४१ तथा २५४०) पर पाँच सतहों में क्रमश: एक सौ सोलह और एक सौ चौंसठ तीर्थंकर-प्रतिमाएँ हैं । तुलनीय प्रथम भाग में चित्र ६६ । अंबिका यक्षी प्रतिमाएं : बाईसवें तीर्थंकर की यक्षी पाम्रा या अंबिका की तीन प्रतिमाएं इस संग्रहालय में संरक्षित हैं जिनमें से एक प्रतिमा (००९७; ऊंचाई ४०.५ सें. मी.) सफेद धब्बेदार लाल बलुए पत्थर से निर्मित है जिसमें यक्षी को उसके वाहन सिंह पर ललितासन-मुद्रा में दर्शाया गया है (चित्र ३७४ ख)। यक्षी के दायें हाथ में आम्र-लंबी है। उसका कनिष्ठ शिशु प्रियंकर उसकी गोद में बैठा है जिसे वह बायें हाथ से सहारा दिये हुए है, जबकि उसका ज्येष्ठ शिशु शुभंकर दायें पैर के समीप खड़ा है। यक्षी के पार्श्व में दोनों ओर एक-एक सेविका खड़ी है । यक्षी आभूषणों से भली-भाँति अलंकृत है और उसके चेहरे पर आनंददायी मधुर मुसकान है। प्रतिमा का ऊपरी भाग खण्डित है । दूसरी प्रतिमा (००३४; ऊँचाई ६१.५ सें० मी०) में यक्षी एक सादा पादपीठ पर आम्रवृक्ष के नीचे त्रिभंग-मुद्रा में खड़ी है। उसके दाये हाथ में आम्र-गुच्छ है। उसका कनिष्ठ शिशु गोद में और ज्येष्ठ उसके समीप बायीं ओर खड़ा है। उसके सिर के ऊपर पुष्पित वृक्ष के मध्य पद्मासन नेमिनाथ की प्रतिमा अंकित है। यक्षी के बायीं और दायीं ओर क्रमशः एक हाथ जोड़े दाढ़ी वाला उपासक तथा एक उपासिका खड़ी है। यक्षी का वाहन सिंह उसके पैरों के नीचे अंकित 610 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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