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________________ 'अध्याय 38] भारत के संग्रहालय इन चारों तीर्थंकरों में एक ऋषभनाथ हैं और दूसरे पार्श्वनाथ । शेष दो तीर्थंकरों को पहचानना संभव नहीं है। बडोह (विदिशा) के गडरमल-मंदिर से प्राप्त एक विशाल प्रतिमा (७६; माप २४१.३५ मी०) में एक महिला को पलंग पर लेटे हुए दिखाया गया है। पलंग की चादर और तकिया अलंकृत है। महिला को बगल में एक छोटे तकिए का सिरहाना किये एक शिशु लेटा हुआ है। महिला के सिर के पीछे भामण्डल है तथा वह सेविकाओं द्वारा परिचारित है जिसमें से चार सेविकाएँ उसकी दायीं ओर हैं तथा एक उसके सिर के पीछे खड़ी है। यह प्रतिमा संभवत: किसी तीर्थंकर की माँ की है जो दिक्कुमारिकाओं द्वारा प्रावित है परंतु कुछ विद्वान इसे यशोदा या देवकी तथा कृष्ण की प्रतिमा मानते हैं। तेरही से प्राप्त अंबिका की एक प्रतिमा में यक्षी को पद्म-पुष्प के आसन पर उसके वाहन सिंह सहित बैठे हए दर्शाया गया है। वह अपने बायें हाथ में पाम्र-लंबी धारण किये हुए है। गोदी में बैठे हुए शिशु की प्राकृति खण्डित हो चुकी है। उसकी बायीं ओर पुरुषाकृति है जो अपने हाथ में अाम्र-लंबी धारण किये है तथा दायीं ओर चमरधारी सेविका खड़ी है। यह प्रतिमा गज-व्याल के कला-प्रतीकों तथा उड़ते हुए गंधर्वो से अति सुंदरता के साथ अलंकृत है। इस संग्रहालय में दो अन्य प्रतिमाएं (२९४ और ३८६; माप क्रमशः ७५ ४१६ सें० मी० और ४०४४७ सें. मी.) हैं जिनमें एक यक्ष-दंपति को दर्शाया गया है । इस दंपति को सामान्यतः गोमेध यक्ष और अंबिका यक्षी के रूप में पहचाना जाता है। मध्यकालीन प्रतिमाएँ : मध्यकालीन पंद्रह प्रतिमाओं में से अधिकांश प्रतिमाएँ पढावली (जिला मुरैना) तथा विदिशा से प्राप्त की गयी हैं। विदिशा से प्राप्त एक तीर्थंकर-प्रतिमा (१२८; ऊँचाई १.१६ मी०) में ऋषभनाथ पद्मासनमुद्रा में एक पादपीठ पर बैठे हुए हैं जो खण्डित है। इस प्रतिमा के अवशेष परिकर-भाग पर अंकित तीर्थकरों की आठ लघु प्राकृतियों से ज्ञात होता है कि यह प्रतिमा एक चतुर्विशति-पट्ट था जिसके मूल नायक ऋषभनाथ हैं। इस प्रतिमा के लिए बारहवीं शताब्दी का समय निर्धारित किया जा सकता है । पढावली से प्राप्त अजितनाथ की प्रतिमा (१२६; ऊँचाई ८२ सें० मी०) में तीर्थकर कायोत्सर्गमद्रा में हैं। उनके पादपीठ पर उनका लांछन हाथी अंकित है। प्रतिमा का बाह्य चौखटा बायीं ओर से टूट चुका है । दायीं ओर के अवशिष्ट चौखटे पर तीन कायोत्सर्ग तीर्थंकर और व्याल का कलाप्रतीक अंकित है। पढावली से ही कायोत्सर्ग शांतिनाथ की एक प्रतिमा (१२७; ऊँचाई २ मी.) प्राप्त हुई है जिसके पादपीठ पर तीर्थंकर का लांछन हिरण अंकित है। चार कायोत्सर्ग तीर्थकरों की अन्य लघु प्राकृतियों ने इस प्रतिमा को एक पंच-तीथिका का रूप दे दिया है। इस प्रतिमा का समय बारहवीं शताब्दी निर्धारित किया जा सकता है। इस संग्रहालय में पार्श्वनाथ की तीन प्रतिमाएँ हैं जो क्रमशः पढावली, अहमदपुर (विदिशा) तथा ग्वालियर के किले से प्राप्त हुई हैं । पढावली से उपलब्ध प्रतिमा में (१२४; ऊँचाई १.४० मी.) 601 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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