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अध्याय 38 ]
भारत के संग्रहालय पार्श्वनाथ की पाँच प्रतिमाएं हैं जिनमें से दो पद्मासन तथा तीन कायोत्सर्ग - मुद्रा में हैं । इनमें से एक प्रतिमा (४१; ऊँचाई १.३० मी०) में तीर्थंकर सप्त-फणी नाग छत्र के नीचे पदमासन मुद्रा में बैठे हुए हैं। उसके पादपीठ पर आसीन यक्षी पद्मावती अंकित है जिसके समीप उसकी सेवा में तत्पर भक्ति- मुद्रा में हाथ जोड़े नागियाँ खड़ी हुई हैं। पार्श्वनाथ की एक दूसरी प्रतिमा (३९; ऊँचाई १.२० मी०) में उन्हें पद्मासन मुद्रा में दिखाया गया है । उनके वक्ष पर श्री वत्स चिह्न का अभाव है । पार्श्वनाथ की तीनों कायोत्सर्ग प्रतिमाएँ (२७, २८, ३१, ऊँचाई क्रमश: १२६, १३७, तथा १२५ सें मी०) लाल बलुए पत्थर से निर्मित हैं । पार्श्वनाथ की दो अन्य प्रतिमाओं ( २८ र २९ ) में कायोत्सर्ग पार्श्वनाथ की बगल में चार पद्मासन तीर्थंकरों की लघु श्राकृतियाँ अंकित की गयी हैं ।
सर्वतोभद्रका: इस संग्रहालय में दो सर्वतोभद्रिका प्रतिमाएँ भी हैं। पहली सर्वतोभद्रिका प्रतिमा (२०४; ऊँचाई १.२० मी०) में शिखर-भाग पर पद्मासन तीर्थंकरों की आकृतियाँ अंकित हैं ( चित्र ३६८ क ) । प्रतिमा की चारों सतहों पर पद्मासन मुद्रा में ऋषभनाथ, अजितनाथ, नेमिनाथ और पार्श्वनाथ बैठे हैं। दूसरी सर्वतोभद्रिका प्रतिमा में चारों ओर ऋषभनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर की प्रतिमाएँ हैं ।
यक्ष - यक्षी प्रतिमाएँ: इस संग्रहालय में ऐसी पाँच प्रतिमाएँ ( १६ से २३; ऊँचाई ५५ से ६८ सें०मी०, ) हैं जिनमें यक्ष गोमेध और यक्षी अंबिका को ग्राम्र वृक्ष के नीचे ललितासन - मुद्रा में बैठे हुए दर्शाया गया है । आम्रवृक्षों पर पद्मासन तीर्थंकरों की लघु आकृतियाँ भी दर्शायी गयी हैं। इनमें से एक प्रतिमा ( २३ ) में कायोत्सर्ग तीर्थंकर की चार और लघु आकृतियाँ अंकित की गयी हैं । इन सभी प्रतिमाओं में अंबिका को सदैव अपनी गोद में शिशु को लिये हुए दिखाया गया है। एक अन्य प्रतिमा ( १८ माप ७४४६८ सें० मी०) में शीतलनाथ के यक्ष ब्रह्मा को दर्शाया गया है । चतुर्भुजी यक्ष ब्रह्मा एक हाथ में पाण्डुलिपि तथा दूसरे हाथ में कमल लिये हुए है (चित्र ३६८ ख ) ।
केंद्रीय पुरातत्त्व संग्रहालय, ग्वालियर
ग्वालियर के किले गूजरी महल में स्थित केंद्रीय पुरातत्त्व संग्रहालय में लगभग पचास जैन प्रतिमाएँ संगृहीत हैं जो भूतपूर्व मध्यभारत के ग्वालियर राज्य के विभिन्न स्थानों से प्राप्त की गयी हैं । इन प्रतिमानों को मोटे तौर पर चार भागों में विभाजित किया जा सकता है : (१) गुप्तकालीन प्रतिमाएँ, (२) वे प्रतिमाएँ जिनके लिए प्रारंभिक मध्यकालीन समय निर्धारित किया जा सकता है ( लगभग नौवीं और दसवीं शताब्दी), (३) मध्यकालीन ( ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी) प्रतिमाएं, (४) उत्तर मध्यकालीन ( ग्वालियर के तोमर वंश के अधीन निर्मित) प्रतिमाएँ ।
गुप्तकालीन प्रतिमाएँ गुप्तकालीन तीन जैन प्रतिमाओं में से दो प्रतिमाएँ कायोत्सर्ग तीर्थकरों की तथा तीसरी प्रतिमा अंबिका यक्षी की है । पहली प्रतिमा (३३; ऊँचाई १.६६ मीटर )
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बाल चंद्रजैन
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