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________________ संग्रहालयों में कलाकृतियाँ [ भाग 10 मध्य प्रदेश के संग्रहालय राजकीय संग्रहालय, धुबेला जिला छतरपुर के नौगाँव के समीप धुबेला पैलेस में स्थित राजकीय संग्रहालय में तीर्थंकरों तथा उनके शासन देवताओं की पचास से अधिक प्रतिमाएं हैं जो चंदेल और कलचुरि काल की हैं। कलचुरिकालीन प्रतिमाएं मूलतः भूतपूर्व बघेलखण्ड रियासत के रीवा राज्य के विभिन्न स्थानों से संग्रहीत की गयी हैं। चंदेलकालीन अधिकांश प्रतिमाएं इस संग्रहालय से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित मऊगाँव तथा समीपवर्ती जगतसागर तालाब से एकत्रित की गयी हैं । अन्य प्रतिमाएं टीकमगढ़, मोहनगढ़, नौगांव, गरोली तथा जसो से प्राप्त की गयी हैं। मऊ तथा नौगांव से प्राप्त प्रतिमाएं मऊ और जगतसागर तालाब से प्राप्त प्रतिमाएं ग्रेनाइट पत्थर की हैं। कुछ प्रतिमाओं के पादपीठ पर अभिलेख अंकित हैं जो उनकी रचना-तिथि तथा दान-दाताओं के विषय में जानकारी प्रदान करते हैं । ये अभिलेख विक्रम संवत् ११६६ (सन् ११३६) तथा संवत् १२२० (सन् ११६३) के मध्य के हैं। तीर्थकर-प्रतिमाएं : इनमें से दो ऋषभनाथ का अंकन है जिनमें वे क्रमश: पदमासन (संख्या ११: माप ५१४४७ सें० मी०) (चित्र ३६५ क) तथा कायोत्सर्ग-(२६; ऊँचाई १.१२ सें. मी.) मद्राओं में हैं। पद्मासन तीर्थंकर के पादपीठ का अभिलेख संवत् १२०३ (सन् ११४६) का है जिसके अनुसार पाल्हण, जो संभवतः कोंचे गोत्र का था, तथा रूपा जो संभवतः उसकी पत्नी थी, द्वारा इस प्रतिमा की उपासना की गयी थी। शांतिनाथ की प्रतिमा (२४; ऊँचाई १.६० मी०) में तीथंकर को कायोत्सर्ग-मुद्रा में दर्शाया गया है। उनके वक्ष पर श्री-वत्स चिह्न अंकित है (चित्र ३६५ ख) । प्रतिमा के दोनों हाथ खण्डित हो चुके हैं। यह प्रतिमा जगतसागर तालाब से प्राप्त हुई बतायी जाती है । इसके पादपीठ पर चार पंक्तियों का संवत् १२०३ (?) का अभिलेख है । अभिलेख की दो पंक्तियाँ छंदोबद्ध हैं जिसके नीचे गद्य में लिखी पंक्तियाँ हैं । इस अभिलेख के अनुसार शांतिनाथ की यह प्रतिमा गोलापूर्व कुल के देवस्वामी और उनके दो पुत्रों शुभचंद्र तथा उदयचंद्र ने स्थापित करायी थी। आगे बताया गया है कि इस प्रतिमा की दुम्बर परिवार के लक्ष्मीधर द्वारा नियमित रूप से उपासना की जाती रही। यह प्रतिमा मदनवर्मन् के राज्यकाल में स्थापित हुई थी जिसे निरापद् रूप से इसी नाम के चंदेल शासक के रूप में पहचाना जा सकता है। काले ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित पद्मासन-मुद्रा में बैठे मुनिसुव्रत की प्रतिमा (४२; माप २८४५६ सें. मी०) का ऊपरी भाग खण्डित है। इसके पादपीठ पर संस्कृत में तीन पंक्तियों का अभिलेख अंकित है जिसके मनुसार यह प्रतिमा गोलापूर्व कुल के किसी सुल्हण ने संवत् १११६ (सन् १०६२) में प्रतिष्ठापित 596 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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