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संग्रहालयों में कलाकृतियाँ
[भाग 10
हैदराबाद से लगभग २० किलोमीटर दूर स्थित चिलुकुरु नामक एक प्रसिद्ध जैन वसदि से लायी गयी पार्श्वनाथ की एक विशालकाय प्रतिमा भी इस संग्रहालय की उल्लेखनीय जैन प्रतिमा है। यह प्रतिमा ३.२५ मीटर ऊँची है जिसमें तीर्थंकर कायोत्सर्ग-मुद्रा में खड़े हैं। यह प्रतिमा बलुए पत्थर से निर्मित है। मुखाकृति का प्रतिरूपण अत्यंत आकर्षक है। उनके बाल घंघराले तथा कर्णाग्र लंबे हैं। सिर के उपर नाग-फण छत्र है। प्रतिमा का बायाँ हाथ नष्ट हो चुका है। एक अन्य प्रतिमा में महावीर को अत्यंत आकर्षक रूप से उत्कीर्ण दिखाया गया है। तीर्थंकर पद्मासन-मुद्रा में बैठे हैं जिनके हाथ ध्यान-मुद्रा में हैं। काले बेसाल्ट पत्थर में उत्कीर्ण यह प्रतिमा भली-भाँति पालिश की हुई है । इसकी ऊँचाई लगभग एक मीटर है। ७५ सें. मी. ऊँचाई के दो चमरधारी तीर्थकर के पार्श्व में दोनों ओर स्थापित किये जाने के लिए पृथक् रूप से उत्कीर्ण किये गये हैं। चमरधारी दायें हाथों में फल और बायें हाथों में चमर लिये हुए हैं। उनके सिर पर सुंदर मुकुट हैं जिनमें हीरेमोती और फंदने अलंकृत दिखाये गये हैं। वे चक्र-कुण्डल भी पहने हुए हैं।
संग्रहालय में अभिलेखांकित ग्रेनाइट पत्थर के कुछ फलक भी हैं जिनके शीर्ष-भाग पर महावीर एवं पार्श्वनाथ तथा अन्य तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं। अभिलेखों में भूमि एवं उद्यान के दान में दिये जाने का उल्लेख है।
मोहम्मद अब्दुल वहीद खान
सालारजंग संग्रहालय, हैदराबाद
सालारजंग संग्रहालय में जैन प्रतिमाएं संख्या में अल्प ही हैं लेकिन वे उल्लेखनीय हैं। इनमें से एक प्रतिमा पाँच तीर्थंकरों की है जो काले पत्थर में उत्कीर्ण है। मूल नायक कायोत्सर्गमुद्रा में हैं और उनकी प्रतिमा पर्याप्त ऊँची है (चित्र ३६२ क) । मूल नायक की दोनों ओर पादपीठ के ऊपर एक-एक तथा ऊपर कंधों के समीप एक-एक तीर्थंकर बैठे हुए हैं। ये समस्त प्रतिमाएं एक सादे आयताकार स्तंभ पर उद्धृत रूप से उत्कीर्ण हैं। मूल नायक की प्रतिमा स्तंभ के मध्य भाग में उद्धृत रूप से काटकर उत्कीर्ण है। मूल नायक के सिर के पीछे भामण्डल है। उनके सिर के समीप दोनों ओर चमरधारी हैं। उनके शीर्ष के ऊपर छत्र है जिसकी सम्मुख
ओर की परिधि फंदनों से अलंकृत है। पैरों के समीप बैठे दोनों तीर्थंकरों के ऊपर भी छत्र अंकित हैं। यह प्रतिमा लगभग बारहवीं शताब्दी की है। इसके पादपीठ पर कन्नड़ लिपि में एक अभिलेख है। बताया जाता है. यह प्रतिमा कर्नाटक की है।
पाषाण में विशदता के साथ उत्कीर्ण दूसरी प्रतिमा कर्नाटक के कूप्बल नामक स्थान से उपलब्ध लगभग बारहवीं शताब्दी की है (चित्र ३६२ ख)। प्रतिमा के सम्मुख-भाग तथा ऊपरी सिरे पर लहरदार लताओं द्वारा बनाये गये परिवृत्तों के बीच तेईस तीर्थंकर बैठे हए दर्शाये गये हैं। मध्य
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