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________________ विदेशों के संग्रहालय अध्याय 37 ] जिनका विवेचन नीचे किया जा रहा है । इस प्रतिमा पर लगभग बारहवीं शताब्दी का एक समर्पण संबंधी अभिलेख अंकित है । तीर्थंकर की एक अन्य चौबीसी में मुख्य प्रतिमा की दोनों ओर अंकित आलंकारिक पटों के भीतरी भाग में तेईस तीर्थंकरों की लघु प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं । गोल-गोल लंबे अवयवों, सपाट घड़ तथा विशेष उभरे हुए घुटनों वाले तीर्थंकर की दिगंबर प्रतिमा में उस आकर्षण एवं जीवंतता का प्रभाव है जो दक्षिणापथ की अनेक जैन प्रतिमानों में पायी जाती है । इसमें तीर्थंकर के शासनदेवता उनके पार्श्व में बैठे दर्शाये गये हैं । इस प्रतिमा के लिए बारहवीं - तेरहवीं शताब्दी का समय निर्धारित किया जा सकता है । 1 दक्षिणापथ से प्राप्त चालुक्यकालीन दिगंबर तीर्थंकर प्रतिमा में उन्हें सामान्य मुद्रा में एक तिहरे छत्र के नीचे दर्शाया गया है । प्रतिमा के शीर्ष-भाग पर एक कीर्ति मुख अंकित है । तीर्थकर की यक्ष-यक्षी की प्रतिमाओं में उनके विशेष उपादान नष्ट हो चुके हैं । तीर्थंकर की प्रतिमा के पार्श्व में एक ओर एक शैलीबद्ध मकर पर श्रारूढ़ आकृति अंकित है । पादपीठ के सम्मुख भाग पर लगभग बारहवीं शताब्दी का एक अभिलेख अंकित है जो प्रायः नष्ट हो चुका है । 1 पार्श्वनाथ की एक सुदक्षतापूर्ण अंकित प्रतिमा में उन्हें ध्यानवस्था में बैठे हुए दर्शाया गया है जिसमें उनके हाथ गोद में रखे हुए हैं जिनकी हथेलियाँ ऊपर की ओर हैं (चित्र ३१६ क ) । सात फण वाला नाग अपने फण- छत्र से पार्श्वनाथ के शीर्ष-भाग पर छाया किये है, नागफण के ऊपर तीन छत्र और एक कीर्ति-मुख है जिससे पुष्पांकित पट्ट निस्सृत हो रहा है, इस प्रकार वह प्रतिमा की देह यष्टि के लिए अलंकरण की रचना करता है। तीर्थंकर के मुख मण्डल की भावाभिव्यक्ति प्रकट करती है कि वे सांसारिक बंधनों से मुक्ति पा चुके हैं। उनके सिर के समीप पार्श्व में दोनों ओर चमरधारी सेवक खड़े हैं जो उन्हें फल जैसी कोई वस्तु भेंट कर रहे हैं। उनका यक्ष धरणेंद्र और यक्षी पद्मावती अपने-अपने वाहन क्रमश: हाथी और सर्प पर आरूढ़ तीनफण वाले नाग छत्र के नीचे बैठे हैं । इस प्रतिमा को लगभग बारहवीं शताब्दी के चालुक्यकालीन मूर्ति-कला की एक अत्यंत उत्कृष्ट कृति माना जा सकता है । दक्षिण भारत और दक्षिणापथ की अनेक जैन कांस्य प्रतिमानों में तीर्थंकर पार्श्वनाथ की एक प्रतिमा उल्लेखनीय है जिसे भ्रमवश महावीर की प्रतिमा के रूप में प्रकाशित किया गया है । ' इस प्रतिमा में पार्श्वनाथ को सत-फणी नाग छत्र के नीचे ध्यान-मुद्रा में बैठे हुए दर्शाया गया है । नागछत्र के ऊपर, एक के ऊपर एक, तीन छत्र प्रदर्शित ( चित्र ३२० ) । पार्श्वनाथ की पूर्वोक्त 1 हैडवे (डब्ल्यू एस ) . 'नोटस प्रॉन टू जैन मेटल इमेजेज़' रूपम् 17 जनवरी, 1924. कलकत्ता. पृ 48. तथा पू 49 के समक्ष का चित्र. Jain Education International 557 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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