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अध्याय 36 ]
स्थापत्य
प्रासाद के भेदों में श्रीविजय, महापद्म, नंद्यावर्त, लक्ष्मीतिलक, नरवेद, कमलहंस और कुंजर नामक सात भेद जिन-मंदिर के लिए सर्वोत्तम माने गये हैं। विश्वकर्मा ने लिखा है कि प्रासादों के अगणित भेद होते हैं (रेखाचित्र ४०-४१) जिनमें से पच्चीस के नाम ये हैं : केशरी, सर्वतोभद्र, सुनंदन नंदिशाल, नंदीश, मंदिर, श्रीवत्स, अमृतोद्भव, हेमवंत, हिमकूट, कैलाश, पृथ्वीजय, इंद्रनील, महानील, भूधर, रत्नकूट, वैडूर्य, पद्मराग, वज्रांग, मुकुटोज्ज्वल, ऐरावत, राजहंस, गरुड, वृषभ और मेरु । इनमें से प्रथम प्रासाद के शिखर के चारों कोणों पर एक-एक अण्डक या लघु-शिखर होते हैं और फिर प्रत्येक प्रासाद के चार अण्डक बढ़ते-बढ़ते पच्चीसवें के एक सौ अण्डक हो जाते हैं।
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रेखाचित्र 39. द्वार-शाखाएँ (भगवान दास जैन के अनुसार) : 1, 7, 11. तीन शाखाएं; 2, 8, 12. पाँच शाखाएं; 3, 4, 5, 9, 13. सात शाखाएं; 6, 10, 14. नौ शाखाएं; 15. द्वार की देहली (1 और 3.
अलंकरण; 2. शंखावटी; 4. अर्ध-चंद्र; 5 और 7. ग्रास; 8. देहली)
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