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________________ पुरालेखीय एवं मुद्राशास्त्रीय स्रोत [ भाग 8 नव-फण-पार्श्वनाथ-बिम्बम् आदि) अभिलेखों में महात्माओं की चरण-पादुकाओं के निर्माण का भी उल्लेख हुआ है (पादुका, पादुका-स्तूपः, स्तूप-सहिताः पादुकाः-, सिद्धचक्र' आदि)। कुछ थोड़े-से अभिलेखों में मंदिरों का निर्माण करने वाले स्थपतियों और मूर्तियाँ गढ़ने वाले मूर्तिकारों के नामों का भी उल्लेख हुआ । उदाहरण के लिए, एक अभिलेख में वृत्तांत है कि राणकपुर में विक्रम संवत् १४६६ (१४३६ ई०) में निर्मित त्रैलोक्य-दीपक-चतुर्मुख-विहार सूत्रधार देपाक की कृति है । पित्तलहर-मंदिर की प्रसिद्ध ऋषभनाथ-मूर्ति सूत्रधार मण्डन के पुत्र सूत्रधार देव की कृति है । अचलगढ़ के चतुर्मुख मंदिर की आदिनाथ की विशाल कांस्य-मूर्ति विक्रम संवत् १५६६ (१५०६ ई०) में सूत्रधार अर्ब द के पुत्र सूत्रधार हरदास ने बनायी। संक्षेप में, यह निविवाद निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि विशेषतः ग्यारहवीं शती के प्रारंभ की पश्चिमी भारत की जैन कला और स्थापत्य के इतिहास को समुचित रूप से समझने में समूचे गुजरात और राजस्थान में उपलब्ध सैकड़ों अभिलेख अनिवार्य सहायता देते हैं। दक्षिण की ओर, आंध्र प्रदेश में जैन धर्म को फलने-फूलने के अनुकूल धरातल न मिल सका। यद्यपि इस क्षेत्र के विभिन्न भागों में कुछ जैन मंदिरों के खण्डहर और विशेषतः तीर्थंकरों की मूर्तियाँ प्राप्त होती हैं, पर वे कला या मूर्ति-विज्ञान की दृष्टि से सुंदर नहीं हैं। इनमें से जो स्मारक और मूर्तियाँ अभिलिखित हैं उनकी संख्या और भी थोड़ी है । तथापि, कम-से-कम सातवीं शती से इस धर्म के अनुयायी इस क्षेत्र में रहे हैं जिन्होंने अहंतों के मंदिर बनवाये। उदाहरणार्थ, पूर्वी चालुक्य राजा विष्णुवर्धन-तृतीय के शासनकाल के एक कांस्य-पट्टिका-अभिलेख में वृत्तांत है कि मुनिसिकोण्डा ग्राम के उस दान का नवीनीकरण किया गया जो विजयवाडा के नडुम्ब-वसदि नामक जैन मंदिर को पूर्वी चालुक्य राजवंश के संस्थापक कुब्ज विष्णुवर्धन की रानी अय्यन-महादेवी ने मूल रूप में किया था। कुडप्पा जिले का दानवुलपडु एक जैन केंद्र था, वहाँ के जैन मंदिर और मूर्तियाँ अपनी उत्कृष्ट कलाकारी के लिए उल्लेखनीय थीं। यहाँ से प्राप्त कुछ मूर्तियाँ और स्थापत्य-संबंधी शिलाखण्ड अब 1 श्री-प्रबुंद-प्राचीन-जैन-लेख-संदोह, 2. क्रमांक 408,410,449,454, 455. 2 अर्बुदाचल-प्रदक्षिणा-जैन-लेख-संदोह, पाबू. 5, क्रमांक 258 तथा परवर्ती. 3 एपिग्राफ़िया इण्डिका, 2, पृ 77. 4 नाहर, वही, पृ 165-166. 5 श्री-अबुंद-प्राचीन-लेख-संदोह, 2. क्रमांक 408. 6 वही, क्रमांक 473. 7 गोपालकृष्णमूर्ति (एस). जैन वेस्टिजेज इन प्रांध्र, आंध्र प्रदेश गवर्नमेण्ट ऑर्क यॉलॉजिकल सीरिज, हैदराबाद. 8 एनुअल रिपोर्ट प्रॉन साउथ इण्डियन एपिग्राफी, 1916-17. कांस्य-पट्टी 9. 462 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001960
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size24 MB
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