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अध्याय 30 ]
भित्ति-चित्र
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रेखाचित्र 25. शित्तन्नवासल : चित्रित राज-दंपति अप्सरा (रंगीन चित्र ५)के चित्र में, जिसमें उसके बायें हाथ को दण्ड-मुद्रा में तथा दूसरे हाथ की अँगुलियों को पताका-मुद्रा में दर्शाया गया है, चेहरा जरा-सा तिरछा और आँखें उसी ओर को मुड़ी हुई हैं, जो नटराज की सामान्य भुजंग-त्रासितक (सर्प से भीत)-मुद्रा की भाँति प्रभावशाली है। हाथों की इस प्रकार की मुद्राओं का पुनरंकन प्रारंभिक चोलकालीन तिरुवरंगलम की धातु-निर्मित नत्यरत शिव की चतुर्मुद्रा वाली प्रतिमा में भी किया गया है जिससे वह अत्यंत सुंदर बन पड़ी है। इसकी तुलना बाराबुदुर1 से प्राप्त नर्तक की ऐसी ही आकृति से अवश्य की जानी चाहिए । इसमें हस्तमद्राओं का संयोजन ठीक वैसा ही है जैसा कि शित्तन्नवासल के भित्ति-चित्रों में किया गया है। नर्तक के दण्ड और पताका-मुद्रा में अंकित हाथों का संयोजन अत्यंत कमनीय और सुखद है।
एक स्तंभ पर का अन्य चित्र (चित्र २६० क), जिसमें बायें हाथ को हर्षोल्लास में फैले हएल्ली-मुद्रा में, दायें हाथ को पताका-मुद्रा में तथा समूची देह-यष्टि को कमनीयता के साथ झूमती हुई दर्शाया गया है (चित्र २६० ख; रेखाचित्र २४) बाल-कृष्ण अथवा बाल-सुब्रह्मण्य के आह्लादक नृत्यमुद्रा के चित्र की याद दिलाता है । कमनीय देहयष्टि जो स्वयमेव अत्यंताकर्षक है, उसपर सायास केशप्रसाधन जो पुष्पों और मोतियों से मण्डित है, तथा सादा परंतु प्रभावशाली आलंकारिक संयोजना
1 शिवराममूर्ति (कलम्बूर). ले स्तूप दु बाराबुदुर. 1961. पेरिस . चित्र 12, 1.
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