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चित्रांकन एवं काष्ठ-शिल्प
[ भाग 7
रेखाचित्र 24. शित्तन्नवासलः चित्रित नर्तकी इतिहास से यह सुविदित है कि जैन धर्मानुयायी पाण्ड्य राजा अरिकेसरी परांकुश ने भी, जो अंतिम दो पल्लव राजाओं का समकालीन था, सातवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में बाल-संत तिरुज्ञानसंबंधर के नेतृत्व में पल्लव राजा महेंद्रवर्मा की भाँति शैव मत ग्रहण कर लिया था। इस प्रकार इस गूफा-मंदिर में जैन परंपरा की निरंतरता देखी जा सकती है।
इस गुफा के भित्ति-चित्रों में एक जलाशय का चित्र है जिसमें मछली, पशु, पक्षी तथा पुष्पचयन करनेवालों का सुंदर चित्रण किया गया है। यह चित्र संभवतः कमल-पुष्प-युक्त सरोवर का नहीं है वरन् सरोवर क्षेत्र का दृष्टांत-चित्रण है। यह क्षेत्र खातिका-भूमि नामक दूसरा भाग है जहाँ भव्य अर्थात् शांत-परिणामी जन, समवसरण में भगवान का धर्मोपदेश सुनने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान जाते समय स्नान कर आनंदित होते हैं।
पुष्प-चयन करती मानवाकृतियों को सुडौल अनुपात में चित्रित किया गया है, उनकी मुखाकृतियाँ अत्यंत आकर्षक हैं। उनके हाथों में जो खिले हुए कमल-पुष्प हैं उनका और कलियों तथा कमलनालों का चित्रण अद्भुत रूप से सजीव है । चित्र में अंकित बत्तखों, मछलियों तथा अन्य जलजंतनों तथा विशेष रूप से भैंसों का चित्रण तो चित्रकारों द्वारा इन जीव-जंतुओं एवं पशनों के आकार, उनकी गति, जीवन और प्रवृत्तियों के गहन अध्ययन के सफल उदाहरण हैं। (रंगीन चित्र १-४) ।
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