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________________ अध्याय 19 ] दक्षिण भारत तमिलनाडु के निर्मित मंदिर प्रस्तर-निर्मित जैन मंदिरों का क्रम तमिलनाडु में पल्लव-शैली के मंदिरों से प्रारंभ होता है। उदाहरणार्थ, कांचीपुरम के उपनगर तिरुप्परुत्तिक्कुण्रम् अथवा जिन-कांची के जैन-मंदिर-समूह में चंद्रप्रभ-मंदिर (चित्र १२७ ख) है, जो आज भी जैन धर्म का लोकप्रिय केंद्र है। विशाल प्राकार के भीतर चार बड़े मंदिरों तथा तीन लघु मंदिरों के समूह में (चित्र १२८ क) यह मंदिर नितांत उत्तरवर्ती संरचना है। यह तीन तल का चौकोर विमान-मंदिर है, जिसके सामने मुख-मण्डप है। तीनों तलों में सबसे नीचे का तल ठोस है और जो मध्य तल के लिए चौकी का काम देता है जिसपर मुख्य मंदिर है। यह तत्कालीन जैन मंदिरों का प्रचलित रूप है। इस मंदिर का भूमि-तल स्थानीय भरे रंग के बलुए पत्थर का बना है, वैसे ही, जैसे पल्लव नरेश राजसिंह द्वारा निर्मित अन्य मंदिर हैं। राजसिंह की राजधानी कांची में अधिष्ठान की गोटों के लिए ग्रेनाइट पत्थर उपयोग में लाया गया है। राजसिंह तथा उसके उत्तराधिकारियों द्वारा निर्मित मंदिरों का यह विशेष लक्षण है। मंदिर की बाहरी भित्ति पर व्यालाधारित स्तंभ और भित्ति-स्तंभों का अंकन है और उनके मध्य उथले देवकोष्ठ उत्कीर्ण हैं। देवकोष्ठों के ऊपर मकर-तोरण बने हैं। सभी देवकोष्ठ रिक्त हैं। प्रथम तल पर हार, कोनों पर चौकोर कर्णकुट और उनके बीच में आयताकार भद्रशालाएं निर्मित हैं। मध्य तल नीचे की अपेक्षा कम चौकोर है और उसके चारों ओर प्रदक्षिणा-पथ है। इसकी बाहरी भित्ति पर बलए पत्थर के भित्ति-स्तंभ हैं। भित्तियाँ ईंटों की हैं और उन्हें बलुए पत्थर के भित्तिस्तंभों से जोड़ा गया है। शीर्षभाग में लघु देवकोष्ठ पंक्तिबद्ध अंकित हैं। इन लघु देवकोष्ठों की प्रमुख विशेषता उनके अग्रभाग में अंकित तीर्थंकरों और अन्य देवताओं की प्रतिमाएँ हैं। लघ देवकोष्ठों के हार के पीछे तीसरे तल का उठान कम है, जिसमें चतुर्भुज सपाट भित्ति-स्तंभ है और चबूतरे पर चार उकड़ बैठे हुए सिंह हैं। इस तल के ऊपर चौकोर ग्रीवा है, जिसके ऊपर चौकोर शिखर और उसके ऊपर चौकोर स्तूपी है। शिखर के चारों ओर तीर्थंकर-मूर्तियाँ हैं । मध्य तल का गर्भगृह चंद्रप्रभ को समर्पित है। इस गर्भगृह में प्रवेश नीचे के ठोस तल में बनायी गयी दो सीढ़ियों के द्वारा किया जाता है। समग्र दृष्टि से यह मंदिर आठवीं शताब्दी की निर्मिति माना जा सकता है; यद्यपि इसका ऊपरी भाग विजयनगर-शासनकाल में ईंटों द्वारा पुननिर्मित किया गया प्रतीत होता है। विजयमंगलम का उपग्राम मेटुप्पुत्तूर कोयम्बत्तूर जिले के कोंगुमण्डलम का एक प्राचीन जैन केंद्र है। यहाँ का चंद्रनाथ-मंदिर गंग-शैली की रचना है, जिसमें ईंट निर्मित दक्षिणमुखी विमान लगभग प्रोसीडिग्स ऑफ दि इण्डियन हिस्ट्री कांग्रेस. 1944. पृ168. (अध्याय 30 भी द्रष्टव्य, जहाँ पल्लव तथा परवर्ती नरेशों द्वारा गुफा-मंदिर के निर्माण का उल्लेख है और जिसमें पूर्ववर्ती तथा परवर्ती चित्रांकनों का सचित्र वर्णन है—संपा.) 215 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001959
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size26 MB
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