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अध्याय 29 ]
दक्षिणापथ मंदिर में शिखर-भाग नहीं है अतः इसे मण्ड-प्रासाद कहा जा सकता है जो सर्वतोभद्र-वर्ग में आता है। इस वर्ग के मंदिर कम ही हैं। 1
मूडबिद्री से २० किलोमीटर दूर, वेणूर में कुछ जैन मंदिर हैं जिनमें से शांतीश्वर-बस्ती (चित्र २५२ ख) विशेष रूप से उल्लेखनीय है । इसमें १४८६-६० ई० का जो अभिलेख है वह यहाँ सबसे प्राचीन है। आमूलचूल पाषाण से निर्मित इस मंदिर के द्वितीय तल पर भी एक गर्भालय है जिसमें एक तीर्थंकर-मूर्ति है और जिसकी छत कुछ-कुछ स्तूपाकार है । निर्माण की यह प्राचीन पद्धति विशेषतः कर्नाटक क्षेत्र में प्रचलित रही है, इसका एक प्रारंभिक उदाहरण ऐहोल का लाढ-खाँ-का-मंदिर है।2 शांतीश्वर-बस्ती के सामने एक सुंदर शिल्पाकन-युक्त मान-स्तंभ है।
दक्षिण कनारा जिले के और भी अनेक स्थानों में इस काल के जैन मंदिर थे पर अब उनके विषय में बहुत कम जानकारी मिलती है। यही तथ्य उत्तर कनारा जिले के विषय में भी है, यद्यपि यहाँ अभिलेखों की संख्या इतनी अधिक है कि उनसे विजयनगर राज्य में जैन धर्म की अत्यंत लोकप्रियता की व्यापक जानकारी प्राप्त की जा सकती है। भटकल के जैन मंदिर का उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। जत्तप्पा नायकन् चंद्रनाथेश्वर-बस्ती (चित्र २५३) के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर भटकल शहर के उत्तर में स्थित है। कज़िन्स के द्वारा दिये गये विवरण के अनुसार उसमें मुख-मण्डप से जुड़े हुए भवनों की दो पूर्व-पश्चिम लंबी पूर्वाभिमुख पंक्तियाँ हैं। पश्चिमी पंक्ति द्वितल है, मुख्य मण्डप प्रथम तल में है जो छह मध्यवर्ती स्तंभों पर आधारित है और जिसके चारों ओर जाली-सहित भित्तियाँ हैं । गर्भगह और उसके दो समानांतर कक्ष लंबाई में इस मंदिर की पूरी चौडाई को काटते हए संयोजित हैं । अंतर्भाग अत्यधिक साधारण है। पूर्वी पंक्ति इस मंदिर के अलिंद का काम करती है और इसकी विन्यास-रेखा दक्षिण भारतीय गोपुरम्-शैली के समकालीन मंदिरों की विन्यास-रेखा से बहुत-कुछ मिलती है। कज़िन्स ने यह भी लिखा है कि इन मंदिरों के स्तंभ किसी निश्चित आकार के नहीं हैं, अनुपात में वे हीनाधिक हैं, स्थूलाकार और अमनोज्ञ हैं।
भटकल से पूर्वोत्तर-पूर्व में १८ किलोमीटर दूर स्थित हदुवल्ली में (संगीतपुर की भाँति) चंद्रनाथ स्वामी का एक साधारण मंदिर है। इसकी समतल छत शिलानों से निर्मित है, और स्थापत्य-कला की दृष्टि से इसका कोई महत्त्व नहीं है। उत्तर कनारा के एक अन्य स्थान बिलोगी में सोलहवीं शती में निर्मित विशाल पार्श्वनाथ-बस्ती है, उसमें उक्त शती के चौथे चरण में किसी समय संवर्धन-कार्य हुआ था। यह मंदिर द्रविड-शैली का है । गेरसोप्पा के खण्डहर-मंदिरों में चतुर्मुख-बस्ती सबसे बड़ी है। इस मंदिर
1 श्रीनिवासन्, वही, पृ 79, रेखाचित्र 1. 2 वही, पृ 78. 3 एनुअल रिपोर्ट प्रॉन कन्नड रिसर्च इन बॉम्बे प्राविस फॉर 1939-40, पृ 58 तथा परवर्ती. 4 कज़िन्स, वही, पृ 135-36.
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