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________________ अध्याय 22 ] के कारण वह औरों से भिन्न है और कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण (रेखाचित्र २२ ) । यद्यपि वह एक सांधार - प्रासाद है, तथापि उसमें छज्जेदार वातायनों से युक्त वक्रभागों, जो स्थानीय सांधार-मंदिरों की विशेषता है, का अभाव है और विन्यास में यह मंदिर आयताकार है और उसके दोनों लघु पा में से प्रत्येक पर अक्षीय प्रक्षेप है । पूर्व में जो प्रक्षेप है उससे मुख मण्डप निर्मित होता है। पश्चिमी प्रक्षेप में गर्भगृह के पृष्ठभाग से संलग्न एक देवालय है (चित्र १६७) जो वास्तव में एक नयी बात है । मंदिर में प्रवेश का मार्ग चतुष्कीवाले एक अत्यधिक अलंकृत छोटे मुख मण्डप से होकर है । मंदिर के भीतरी भाग में एक मण्डप, अंतराल और गर्भगृह हैं जो सब-के-सब एक आयताकार दीवार द्वारा परिवेष्टित हैं । मण्डप की दीवार को भीतर की ओर से अर्ध-स्तंभों का आधार प्राप्त है तो बाहर की ओर से मूर्तियों की पट्टियों का, तथा साथ ही ऐसे जालीदार वातायनों का जिनके द्वारा भीतर की ओर यथेष्ट प्रकाश आता है। मूर्ति योजना के बाहरी अलंकरण में ये वातायन बाधक नहीं है । इसके अग्र भागों ( चित्र १६८ ) में उथले रथों ( प्रक्षेपों) की एक श्रृंखला है जिनके बीच-बीच में संकीर्ण सलिलांतर (आ) हैं । इन प्रक्षेपों और बालों में जंघा पर मूर्तियों की तीन सुंदर पट्टियाँ हैं । नीचे की पंक्तियों की मूर्तियाँ सबसे बड़ी हैं और उनमें प्रक्षेपों पर देवी-देवताओं एवं अप्सराओं की तथा आालों में व्यालों & Jain Education International 5 10 15 METRES 48 FEET p 16 32 रेखाचित्र 22. खजुराहो : शांतिनाथ मंदिर की रूपरेखा की मूर्तियाँ बनी हैं। ऊपर की दो पंक्तियों की आकृतियाँ क्रमशः श्राकार में छोटी होती गयी हैं । बीच की पंक्ति में देवी - दंपति तथा सबसे ऊपर की पंक्ति में प्रक्षेपों तथा आालों में मुख्य रूप से विद्याधर - मिथुन अंकित किये गये । अत्युत्तम सज्जा और सौंदर्यपूर्ण मूर्तियों की इन तीन पट्टियों द्वारा इन प्रक्षेपों एवं आलों को जो लालित्य प्रदान किया गया है उसके होते हुए भी शिखर से नीचे वाले मंदिर का अग्रभाग एक ठोस स्थूल दीवार के कारण नीरस-सा हो उठा है । यहाँ बाहरी उठान के उन गहरे दंतुरणों तथा छज्जेदार वातायनों के फलस्वरूप प्राप्य उस वास्तु शिल्पीय उभार और छाया का अभाव है जो विकसित खजुराहो- शैली की अपनी विशेषता है । 287 मध्य भारत For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001959
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size26 MB
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