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अध्याय 1]
संपादक का अभिमत है क्योंकि इन अवधियों की लगभग सम्पूर्ण उत्तर भारतीय जैन सामग्री मथुरा से प्राप्त
___ईसा-पूर्व ३०० से ३०० ई० तक की अवधि में मध्य भारत का वर्णन नहीं पाता है। इसका सीधा-सा कारण यह है कि इस प्रदेश और इससे संबंधित अवधि में जैन पुरावशेषों का अभाव है, यद्यपि इनके संबंध में विक्रमादित्य, कालकाचार्य, गर्दभिल्ल, सातवाहन से संबंधित घटनाचक्रों के आख्यानों का बाहुल्य है। सरगुजा जिले की रामगढ़ पहाड़ी पर स्थित जोगीमारा-सीताबेंग गुफाओं के कुछ चित्रों की जैनों से संबद्धता बतायी गयी है किन्तु इन चित्रों के और अधिक अध्ययन की आवश्यकता है।
इसी प्रकार दक्षिणापथ में ३०० ई० पू० से ३०० ई० और ३०० ई० से ६०० ई०4 की अवधियों के बीच, और दक्षिण भारत में उक्त अंतिम अवधि में कोई जैन पुरावशेष प्राप्त नहीं हुए हैं। अतएव उक्त अवधियों से संबंधित कोई अध्याय ग्रंथ में सम्मिलित नहीं किया गया है।
1 ईसा-पूर्व 300 से 300 ई० की अवधि के अंतर्गत जिस संभव कमी की यहाँ पूर्ति की जा सकती है वह है इलाहाबाद
जिले में कौशाम्बी के निकट पभोसा की एक कृत्रिम गुफा । जैसा कि ए० फुहरर ने मानुमेण्टल एण्टिक्विटीज ऐण्ड इन्स्क्रिप्शंस इन द नार्थ वेटर्न प्राविन्स ऐण्ड अवध. आकियॉलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इण्डिया, न्यू सीरीज. 2. (न्यू इम्पीरियल सीरीज़. 12) 1891. इलाहाबाद.पृष्ठ 143-44 में वर्णन किया है-यह गुफा के पहाड़ी मुखभाग के ऊपर है। इसका आकार 2.7x1.4 मीटर और ऊंचाई 1 मीटर है। इसका दरवाज़ा 0.66x0.53 मीटर और इसकी दो खिड़कियाँ 048x0.43 मीटर हैं । भीतर, दक्षिण पार्श्व में तकिया सहित एक प्रस्तर शय्या है। उक्त लिपि में कुछ शिलालेखों के अतिरिक्त दो शिलालेख और हैं जिनमें कहा गया है कि इस गुफा का निर्माण आषाढ़सेन ने कराया था जो अपने अन्य आनुवंशिक संबंधों के अतिरिक्त राजा बहसतिमित्र का मामा था। इस बहसतिमित्र (बृहस्पतिमित्र) की पहचान सामान्य रूप से उसी नाम के मगध-नरेश से की जाती है जिसे उड़ीसा के खारवेल द्वारा ईसा से पहली या दूसरी (जिसकी संभावना कम है) शती में पराजित किया गया था। इस गुफा का निर्माण काश्यपीय अर्हतों के लिए किया गया था । क्योंकि महावीर काश्यप गोत्र के थे, अतः यह कहा जाता है कि जिन अर्हतों के लिए इस गुफा का निर्माण हुआ था वे जैन थे। हीरालाल जैन, पूर्वोक्त
पृ309. 2 उमाकान्त प्रेमानन्द शाह ने मेरा ध्यान अपने लेख सुवर्ण भूमि में कालकाचार्य (विवरण उपलब्ध नहीं) की ओर
आकर्षित किया है जिसमें उन्होंने कालकाचार्य को ऐतिहासिक व्यक्ति माना है. 3 रायकृष्णदास. भारत की चित्रकला. 1962. इलाहाबाद. पृ2. देखिए ब्लाख (टी) । प्रॉयॉलॉजिकल सर्वे
ऑफ इण्डिया. एनुअल रिपोर्ट. 1903-04. 1906. कलकत्ता. पृ 12 एवं परवर्ती. / एम० वैकटरमैया द्वारा 1961 ई० में गुफाओं के संबंध में एक सम्पूर्ण तथा सचित्र रिपोर्ट तैयार की गयी थी जो भारतीय पुरातत्व
सर्वेक्षण के अभिलेखागार में उपलब्ध है। 4 जैन, पूर्वोक्त, पृ 311./ फर्गुसन (जेम्स) तथा वर्जेस (जेम्स). केव टेम्पल्स ऑफ़ इण्डिया. 1880. लन्दन. पृ 491
के आधार पर कहते हैं कि धाराशिव गुफाओं का समूह जो उस्मानाबाद से अधिक दूर नहीं है, जैन है; क्योंकि उसमें तीर्थंकर प्रतिमाएं हैं। किन्तु, इस बात की अधिक संभावना है कि मूलरूप से वे बौद्ध थीं और कालांतर में जैनों द्वारा प्रयोग में लायी गयीं। इन गुफाओं का निर्माण 500 ई० और 620 ई. के बीच हुनाक
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