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अध्याय 18 ]
दक्षिणापथ
छठी शती के अंतिम चतुर्थांश में राजकीय प्रश्रय के अंतर्गत ब्राह्मण्य एवं जैन धर्मों के धार्मिक सादों के निर्माण में चट्टान तथा प्रस्तर के विशेष प्रयोग से एक नये युग का सूत्रपात्र हा। ५७८ में चालुक्य मंगलेश ने बादामी में स्थानीय चिकने बलुए पत्थर की चट्टानों में विष्णु को समर्पित गुफामंदिर शैलोत्कीर्ण करवाया था।
गुफा-मंदिर
चालुक्यकालीन गुफा-मंदिरों में आयताकार स्तंभयुक्त बरामदा या मुखमण्डप, एक न्यूनाधिक वर्गाकार स्तंभयुक्त कक्ष या महामण्डप और लगभग वर्गाकार गर्भगृह होते हैं। ये मण्डप-शैली के मंदिरों के उदाहरण हैं जिनमें उर्ध्वस्थ चट्टान के मुख पर एक के बाद दूसरे कक्ष निर्मित होते हैं। बादामी पहाड़ी शिखर के उत्तरी ढाल पर उत्कीर्ण चार मंदिरों में से अंतिम (जो कालक्रमानुसार भी अंतिम है) और सर्वोत्कृष्ट एक जैन मंदिर सातवीं शती के मध्य में उत्कीर्ण ऐसे जैन मंदिरों का एकमात्र उदाहरण है (चित्र ११३ क) । यहाँ निर्मित अन्य तीन ब्राह्मण्य मंदिरों की रूपरेखा के समान होते हुए भी जैन मंदिर आकार में लघुतम किंतु अलंकरण में सर्वोत्कृष्ट हैं । स्तंभीय अग्रभाग के नीचे सामने की ओर एक छोटा-सा चबूतरा है और अपरिष्कृत बहिर्भाग के ऊपर एक कपोत है जिसके नीचे का भाग चिकना और घुमावदार है। कपोत के बीच में कुबेर की प्राकृति उत्कीर्ण है। मुखमण्डप के अग्रभाग में चार स्तंभ हैं और दोनों कोनों पर दो भित्ति-स्तंभ हैं। बीच के दो खानेदार स्तंभ चालुक्य शैली और उसके प्रतिरूपों की प्रमुख विशेषतानुसार अधिक सज्जा से बनाये गये हैं। अन्य गुफाओं की तुलना में, इन बृहदाकार स्तंभों के वर्गाकार आधार-भाग में कलापिण्ड उत्कीर्ण हैं जिनमें कमल, मिथुन युगल, लता-वल्लरियाँ तथा मकर-वल्लरियाँ अंकित हैं। इन स्तंभों के सुनिर्मित शिखर, पल्लवशैली की भाँति कलश, (पुष्पासन) और कुम्भ के अलंकरण युक्त हैं। इन कलशों के अग्रभाग में मिथुनयुग्म उत्कीर्ण हैं और बहिर्भाग में कपोत की विपरीत दिशा में मुंह बाये व्याल-युक्त नारीस्तंभ हैं। पोतिकाएँ या धरने चालुक्य शैलीवत् दुहरे स्तर की हैं और निचला भाग दुहरे घुमाव (कुण्डलित) वाला है अन्तः एवं बाह्य मण्डपों के मध्य चार स्तंभ तथा दो भित्ति-स्तंभ और हैं। मुख मण्डप की छत ाड़ी कड़ियों द्वारा पाँच खण्डों में विभक्त है । मध्य खण्ड में विद्याधर युगल की
। मूर्ति उत्कीर्ण है। महामण्डप के केवल तीन प्रवेशद्वार हैं। दोनों ओर के दो स्तंभों और भित्तिस्तंभों के बीच का भाग एक प्रोट भित्ति से बंद कर दिया गया है। प्राड़ी धरनों द्वारा तीन खण्डों में विभक्त छत के मध्यभाग में एक दूसरा विद्याधर युगल अंकित है। मंदिर के प्रवेशद्वार तक पहुँचने के लिए अंतःमण्डप की पिछली मित्ति के मध्यभाग में तीन शैलोत्कीर्ण सोपान और एक चंद्रशील का प्रावधान है (चित्र ११३ ख)।
.. प्रवेशद्वार पाँच चितकबरी शाखाओं के पक्षों से निर्मित है। यह चालुक्य शैली की एक विशेषता है । मुड़े हुए कपोत सरदल पर कुडु अलंकरणयुक्त लघुमंदिरों के प्रतिरूपों की उत्तरांग शृंखला बनी हुई है; जिनमें शालाएँ, द्वितल मण्डप या अट्टालिकाएँ हैं। शाला-मुख पर तीर्थंकर
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