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अध्याय 16]
मध्य भारत
मंदिर का उत्तर-पश्चिम कोना शिलाटंकित होने के कारण पश्चिमी भाग के दसवें-ग्यारहवें तथा उत्तरी भाग के बारहवें-तेरहवें देवकोष्ठ कभी निर्मित ही नहीं हुए।
अंतराल के उत्तरी भाग में स्थित चौदहवें देवकोष्ठ में दो-भुजी कुबेर को खड़े हुए दर्शाया गया है । कुबेर के हाथों में कपाल (खप्पर) और थैली है । थैली दो निधिकलशों के ऊपर रखी हुई है। चौदहवें देवकोष्ठ के नीचे एक चतुर्भुजी देवी खड़ी है, जिसका एक हाथ अभय-मुद्रा में है तथा अन्य हाथों में पद्मपुष्प, नीलपद्म और संभवतः दर्पण हैं ।
महामण्डप के उत्तरी कक्षासन के नीचे पंद्रहवें देवकोष्ठ में ललितासन मुद्रा में पासीन बारहभुजी देवी की एक प्रतिमा है । देवी के दायीं ओर के अवशिष्ट पाँच हाथों में खड्ग, दर्पण, पुष्प, चक्र
और वज्र हैं तथा बायीं ओर के अवशिष्ट दो हाथों में पद्मपुष्प तथा फल हैं। उसके वाहन के रूप में एक पशु अंकित है जो खण्डित हो चुका है किन्तु उसका आकार-प्रकार वराह या सुअर से मिलताजुलता है।
मण्डप के उत्तरी निर्गम पर स्थित सोलहवें देवकोष्ठ में इन्द्र की द्विभुजी प्रतिमा उत्कीर्ण है। इन्द्र ललितासन-मुद्रा में गज पर आरूढ़ हैं। उनके बायें हाथ में वज्र है तथा दायाँ हाथ खण्डित हो चका है। सोलहवें देवकोष्ठ के नीचे, अधिष्ठान के कोष्ठ में, बारहभुजी देवी की प्रतिमा स्थित है। देवी ललितासन-मुद्रा में पहिये-युक्त लौहरथ में आरूढ़ है। देवी का एक बायाँ हाथ अभय-मुद्रा में है तथा अन्य बायें हाथों में त्रिशूल, चक्र, ढाल, धनुष, प्रसाधन-पेटिका और फल हैं। लौहरथ (लौहासन) के कारण यह देवी द्वितीय तीर्थंकर की यक्षी अजिता या रोहिणी के रूप में पहचानी जा सकती है।
सत्रहवें देवकोष्ठ में ललितासन में बैठी हुई एक चतुर्भुजी देवी की प्रतिमा है, जिसका सिर और हाथ खण्डित हो चके हैं। उत्तरी भाग के पूर्वी कोने पर स्थित अठारहवें देवकोष्ठ में देवी ललितासन में मत्स्य पर आरूढ़ है। देवी के अवशिष्ट हाथों में से दो वरद एवं अभय-मुद्रा में हैं तथा एक अन्य हाथ में जाल है। इस देवी को पंद्रहवें तीर्थकर की श्वेतांबर यक्षी कंदर्पा के रूप में पहचाना जा सकता है।
उत्तर-पूर्व कोने पर स्थित उन्नीसवें देवकोष्ठ में, रेवंत की प्रिया ललितासन में बैठी है। यह देवी चतुर्भजी है. जिसके चारों हाथों में वज्र, खट्वांग, जाल और छत्र हैं। उसके पासन के नीचे अश्व अंकित हैं।
मंदिर का मुखमण्डप चार स्तंभों पर आधारित है। इसका वितान समक्षिप्त शैली में नेत्राकार है जिसमें कोल तथा गजतालू के अलंकरण बने हैं। मुखमण्डप के भीतरी दो स्तंभों के मध्य मण्डप के प्रवेशद्वार में भी इसी प्रकार के वितान हैं।
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