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वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 600 से 1000 ई०
[ भाग 4 का विपुल अलंकरण है। कोण इसलिए तनिक गोल से रखे गये हैं ताकि सामनेवाली पट्टिकाओं की तुलना में वे और भी सुन्दर प्रतीत हों, किन्तु तीक्ष्ण किनारों को फिर भी छोड़ा नहीं गया है ।।
इस युग की जैन मूर्तियाँ मिदनापुर जिले में भी प्राप्त हुई हैं। उनमें से बाराभूम में मिली पार्श्वनाथ की मूर्ति का उल्लेख किया जा सकता है । अब कलकत्ता के भारतीय संग्रहालय में संगृहीत यह मूर्ति एक चतुर्विंशतिका है जिसमें चौबीस तीर्थंकरों की लघ मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। इसमें उत्कृष्ट कोटि का कला-कौशल दिखाया गया है। मुर्ति दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दियों की हो सकती है।
पश्चिम बंगाल में बाँकुरा जैन कला का सर्वाधिक उर्वर केन्द्र रहा प्रतीत होता है। सामान्य योग-मद्रा में पासीन और शीर्ष पर सप्त-फणावलि से मण्डित पार्श्वनाथ की वाँकुरा जिले के देवलभीरा से प्राप्त मूर्ति जैन कला का एक सुंदर उदाहरण है और शैली के आधार पर इसे दसवीं शती का माना जा सकता है। यह मूर्ति भारतीय संग्रहालय में सुरक्षित है।
देवला मित्रा ने बाँकुरा जिले में दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दियों के बहुत से अवशेषों का अन्वेषण किया है । जिसके आधार पर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यह क्षेत्र दिगंबर जैनों का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। जिन स्थानों का उन्होंने सर्वेक्षण किया, उनमें अनलिखित ग्राम सम्मिलित थे : कंगसावती और कुमारी के संगम पर अंबिकानगर; अंबिकानगर के सामने चिटगिरी; अंबिका नगर के पूर्व में चार किलोमीटर पर बरकोला; अंबिकानगर के उत्तर-पश्चिम में तीन किलोमीटर पर परेशनाथ; परेशनाथ के सामने चियादा; कंगसावती का तटवर्ती केंदना । अंबिकानगर से प्राप्त जैन अवशेषों में ग्राममंदिर के बाहर पड़ा नेमिनाथ की शासनदेवी अंबिका की मूर्ति का एक खण्ड (स्पष्ट है कि देवी के नामपर इस ग्राम का नामकरण हुआ है) और ऋषभनाथ की एक मूर्ति उल्लेखनीय हैं । अंबिका की मति का यह अवशिष्ट खण्ड अब मंदिर के भीतर रखा है और ब्राह्मण देवी के रूप में उसकी पूजा की जाती है। अंबिका देवी के मंदिर के पीछे एक भग्न मंदिर में स्थापित लिंग के पास पड़ी ऋषभनाथ की मूर्ति (चित्र ८३ क) का कला-कौशल उत्कृष्ट कोटि का है। मनोहर मुखमुद्रा और जटा-मुकुटयुक्त यह मूर्ति कायोत्सर्ग-प्रासन में युगल पंखुड़ियोंवाले कमल पर खड़ी है, जिसके नीचे वृषभ चिह्न अंकित है। अन्य मूर्तियों के सदृश, इसके भी दोनों ओर एक-एक अनुचर है और उसके
मजूमदार, पूर्वोक्त, 1942, पृ 500-01 में सरस्वती के विचार [बर्दवान विश्वविद्यालय में संग्रहालय और कलावीथि के संग्रहाध्यक्ष श्री शैलेन्द्रनाथ सामन्त से हमें इस मंदिर की पुन: सूचना प्राप्त हुई है, उन्होंने सात देउलिया में 1957 में उनके द्वारा खोजी गयी मूर्तियों के कुछ चित्र भी भेजे, जिनमें से कुछ यहाँ प्रकाशित किये जा रहे हैं
--संपादक] 2 बनर्जी, पूर्वोक्त, पृ 465. 3 वही, पृ 464. 4 जर्नल ऑफ दि एशियाटिक सोसाइटी (लटर्स). 24; 1958; 131-34.
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