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वास्तु- स्मारक एवं मूर्तिकला 300 से 600 ई०
[ भाग 3
हुई हैं, उनमें से लगभग आधा दर्जन लघु मूर्तियों की पहचान शिशु जन्म के जैन- देवता नैगमेष 1 के रूप में की गयी है । इनकी विशेषताएं हैं- पशु-मुख किन्तु बकरे के समान प्रकृति, लम्बे लटकते हुए कान जिनमें या तो छेद किये हुए हैं या कटाव चिह्न हैं । साधारणतः मुँह का अंकन टेढ़ी नाक 2 के नीचे गहरे कटाव चिह्न के रूप में किया गया है । वैशाली में मिली नैगमेष की मृण्मूर्तियों में तीन प्रकार स्पष्ट दिखाई देते हैं--स्त्री, पुरुष और शिशुसहित या शिशुरहित दम्पत्ति । इन प्रकारों में भी स्त्री - मूर्तियों की प्रधानता है । कुषाणकाल की ऐसी ही लघु मूर्तियों में कानों के उपर सींगों का होना एक अतिरिक्त विशेषता है । कुमराहार के चौथे और पाँचवें खुदाई स्थलों से इस प्रकार की लगभग बारह लघुमूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं, जो चौथी अवधि ( लगभग ३००-४५० ई०) तथा पाँचवीं अवधि (लगभग ४५०-६०० ई० ) की हैं । वे पुरुष और महिला प्रकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा शैली में वैशाली से प्राप्त कृतियों के समान हैं ।
ये सभी लघु मृण्मूर्तियाँ हाथ की बनी हुई हैं और उनमें अहिच्छत्र की नैगमेष मूर्तियों जैसा मनोहारी आकर्षण नहीं है । स्थूल रूप में हाथ से बनायी गयी, पुरातन और अपरिष्कृत ये मूर्तियाँ किसी ऐसी सांप्रदायिक परंपरा की प्रतीत होती हैं, जो शास्त्रीय सुघट्यता तथा सुसंस्करण के द्वारा रूपांतरित नहीं हो पायी थीं। जो भी हो, एक सुझाव यह भी दिया जाता है कि हो सकता है कि पहाड़पुर मृण्मूर्तियों की कुछ प्राचीन फलकों का उस समय पुनः समायोजन किया गया हो, जब आठवीं शताब्दी में जैन विहार को एक नया रूप दिया गया था । ऐसा कहा जाता है कि पहाड़पुर में कलाशैली का गुप्त काल से मध्यकाल' की कला - शैली के रूप में रूपांतर हुआ था, किन्तु वर्तमान में जो कलावस्तुएँ उपलब्ध हैं, वे इस प्रकार की किसी कला-प्रक्रिया से जैन संबंधों की सूचना नहीं देतीं ।
1
हरिनैगमेष के लिए द्रष्टव्य : जर्नल ग्रॉफ दि इण्डियन सोसायटी श्रॉफ ओरियण्टल आर्ट 29; 1952-53; 19 तथा परवर्ती पृष्ठों में उमाकांत प्रेमानंद शाह का लेख ।
2 ऍश्येण्ट इण्डिया 4; 1947-48; 134 में वासुदेवशरण अग्रवाल का लेख.
3 कृष्णदेव तथा मिश्र, पूर्वोक्त, पृ 51
4
अग्रवाल, पूर्वोक्त, पृ 134-37, चित्र 48 क.
5
दासगुप्त ( सी सी ) . श्रौरिजिन एण्ड डेवलपमेण्ट श्रॉफ क्ले स्कल्पचर्स इन इण्डिया. 1961 कलकत्ता पृ 229-34. 6 क्रमरिश ( स्टेला ) . इण्डियन स्कल्पचर्स. लंदन. पृ 216.
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रमानाथ मिश्र
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