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________________ श्रध्याय 10 ] ध्यानस्थ तीर्थकर मूर्तियाँ ध्यानस्थ मुद्रा में आसीन तीर्थंकरों की प्राप्त मूर्तियों में से दो निश्चय ही आदिनाथ की हैं (पु० सं० म० : बी-६ और बी - ७, चित्र ४६ ) । एक मूर्ति नेमिनाथ की थी ( रा० सं० ल० : जे - ८६ ) किन्तु वह अब पूरी तरह खंडित अवस्था में हैं और शिलापट्ट पर उनके अनुचर बलभद्र की मूर्ति ही शेष बची है । इन मूर्तियों में से तीन अभिलेखांकित हैं । ( रा० सं० ल० : जे ५८४, जे-५२; पु० सं० म० : बी - ७५) । अंत में वर्णित मूर्ति पर वर्ष ६७ ( अर्थात् ४१६ ई० ) अंकित है । 1 इन मूर्तियों ( रा ० सं० ल० : जे-५२, जे ५८४ ( ? ), जे - ११६; पु० सं० म० : बी-६, बी-७ चित्र ४६, १५.६८३, ५७.४३८८) में से अनेक पर चमरधारियों का चित्रण यह सिद्ध करता है कि यह कला-प्रतीक, जिसका अंकन पिछले युग में प्रारंभ हुआ था, धीरे-धीरे लोकप्रिय होता जा रहा था । मथुरा कुषाणयुग की पद्मासन प्रतिमाओं से तुलना करने पर इन मूर्तियों में निश्चय ही अधिक सजीवता और स्वाभाविकता दृष्टिगोचर होती है । खड्गासन में तीर्थंकर मूर्तियाँ पद्मासन की अपेक्षा खड्गासन में बहुत कम मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं । खड्गासन में प्राप्त छह मूर्तियों में से दो प्रादिनाथ (पु० सं० म० : बी-३३, १२.२६८, चित्र ४७ ख ), एक नेमिनाथ ( रा० सं० ल० : जे - १२१, चित्र ४७ क ) और चौथी प्रतिमा पार्श्वनाथ ( रा० सं० ल० : जे - १०० ) की है । शेष दो प्रतिमाओं की पहचान कर सकना कठिन है । इस वर्ग में केवल एक (पु० सं० म० १२ २६८ चित्र ४७ ख ) ही अभिलेखांकित है जिसमें यह उल्लेख है कि आदिनाथ की यह प्रतिमा सागर की थी और समुद्र द्वारा प्रतिष्ठापित की गयी थी तथा इसके स्वामी सागर ने किसी संगरक को इसे दे दिया था । 2 पुरालिपि के आधार पर, इस पुरालेख का और स्वभावतः ही इस प्रतिमा का भी - - समय चौथी शताब्दी का प्रारंभिक काल निर्धारित किया गया है । इस संबंध में यह ध्यान देने योग्य है कि अधिकांश पद्मासन और खड्गासन प्रतिमाएँ उभरे रूप में उत्कीर्ण हैं, पृष्ठाधार शिलापट्ट के बिना नहीं । 1 अग्रवाल ( वासुदेवशररण). कैटेलॉग ग्रॉफ द मथुरा म्युजियम जर्नल ग्रॉफ व यू पी हिस्टॉरिकल सोसाइटी, 23; 1950; 54. 2 वही, पृ 56. Jain Education International 113 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001958
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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