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अध्याय 9]
दक्षिण भारत
१६-शित्तन्नवासल (ईसा-पूर्व द्वितीय-प्रथम शताब्दियाँ)--इन प्राचीन जैन प्रतिष्ठानों (चित्र ३६ ख) में सर्वाधिक उल्लेखनीय और ईसा-पूर्व द्वितीय शती से नौवीं शती ई० तक निरंतर जैनों के प्रभुत्व में रहा एक प्रतिष्ठान शित्तन्नवासल है जो तिरुच्चिरप्पल्लि जिले (भूतपूर्व पुदुक्कोट्ट रियासत) के तिरुमयम् तालुक में स्थित में है।
स्थानीय पहाड़ी पर एलदिपत्तम् नामक एक प्राकृतिक गुफा है, उससे लगे हुए सात ऐसे चौकोर गड्ढे हैं जो गुफा तक पहुंचने में सीढ़ियों का काम करते हैं। वितान का काम देनेवाली ऊपरी प्रक्षिप्त शिला से इस गुफा की लम्बाई बढ़ गयी है। प्रस्तर-शय्याएँ छेनी से चिकनी की गयी हैं। एक शय्या के समीप लगभग ईसा-पूर्व द्वितीय-प्रथम शताब्दियों का एक ब्राह्मी अभिलेख (चित्र ४०) है। उसमें एरुमिनाटु (कर्नाटक क्षेत्र ?) के कुमुलर में उत्पन्न किसी काविटु-इतेण् नामक व्यक्ति के लिए चिरुपाविल इलयरे द्वारा अतिट-अणम (शय्या या आसन) के बनाये जाने का उल्लेख है।
पहाड़ी की दूसरी ओर, उक्त प्राकृतिक गुफा से नीचे के स्थान पर जैन मत का एक गुफामंदिर है (द्रष्टव्य : अध्याय १६) । मूलतः सातवीं शती में उत्कीर्ण किये गये इस गफा-मंदिर का नौवीं शती में नवीनीकरण तथा पुनः अलंकरण किया गया, जिससे ज्ञात होता है कि यह जैन-केन्द्र निरंतर एक सहस्र वर्ष से भी अधिक समय तक महत्त्वपूर्ण रहा।
२०-नर्तमलै---शित्तन्नवासल के उत्तर में नतमले के समीप तीन पहाड़ियों का एक और समूह है जिनमें से एक का नाम अम्मचलम् पहाड़ी (या अलुरुत्तुमलै) है । गुफा के ऊपर की प्रक्षिप्त शिला पर पालिशयुक्त शय्याएँ और सातवीं-नौवीं शताब्दियों की परवर्ती जैन मूर्तियाँ हैं।
२१-तेनिमलै (तेनुर्मलै)---उसी क्षेत्र में एक अन्य पहाड़ी है तेनिमलै, जिसके पूर्वी भाग में एक अन्दर-मदम् नामक प्राकृतिक गुफा है, जहाँ प्राचीन काल में जैन मुनि तपस्या किया करते थे। इस गुफा के पार्श्व में सातवीं-नौवीं शताब्दियों की कुछ जैन मूर्तियाँ हैं (चित्र ४१) ।
करूर तालुक :
२२-पुगलूर (ईसा की तीसरी-चौथी शताब्दियाँ ? )पुगलूर में अरुनत्तर पहाड़ी पर शय्याओं से युक्त गुफाएं हैं (चित्र ४२) । इन शय्याओं के उष्णीष पर बारह छोटे ब्राह्मी अभिलेख उत्कीर्ण हैं। एक चेर राजकुमार के द्वारा बनवाये गये अधिष्ठान या आवासगृह का दाता के रूप में यार के एक अमणन (दिगंबर जैन साधु) चेरिकायमन् का उक्त अभिलेखों में से तीन में उल्लेख है। इन अभिलेखों का समय ईसा की तीसरी-चौथी शताब्दियाँ माना गया है। ये और कोयम्बतूर जिले के अरच्चलु के तीन अभिलेख कर्नाटक से तमिलनाडु, विशेषतः मदुरै क्षेत्र की ओर, जानेवाले मार्ग पर स्थित कोंगुदेश (वर्तमान कोयम्बतूर, इरोद, सलेम और करूर क्षेत्र) के प्राचीन अभिलेखों में विशेष
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