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श्रध्याय 9 ]
दक्षिण भारत
- कीज वलवु ( ईसा पूर्व द्वितीय- प्रथम शताब्दियाँ ) -- कीजवलवु की पंचपाण्डवमले में विशाल चट्टानें और गुफाएँ हैं । यहाँ के ब्राह्मी अभिलेख में तोण्टि के एक श्रावक द्वारा इस चैत्यवास की स्थापना का उल्लेख है ।
१० - तिरुवादवूर ( ईसा पूर्व द्वितीय- प्रथम शताब्दियाँ ) -- इस ग्राम में भी ब्राह्मी अभिलेखांकित गुफाएँ हैं।
तिरुमंगलम् तालुक :
११- विक्किरमंगलम् ( ईसा पूर्व द्वितीय- प्रथम शताब्दियाँ) - - नागमले नामक स्थान पर गुफाओं और शय्याओं सहित उण्डान्नकल्लु नामक एक विशाल चट्टान है, जिसके ब्राह्मी अभिलेखों में उन लोगों के नाम आये हैं, जो इन गुफाओं में रहते थे या जिन्होंने उनका दान किया ।
नीलक्कोट्टे तालुक :
१२- मेट्टुपट्टि (ईसा पूर्व द्वितीय- प्रथम शताब्दियाँ ) - - इस ग्राम की सिद्धरमलै ( सिद्धों की पहाड़ी) नामक पहाड़ी पर शय्याओं युक्त गुफाएँ हैं । चट्टान के शय्याओं युक्त निचले भाग को कमल की पंखुड़ियों का-सा आकार दे दिया गया है । इसी पीठ पर एक वृत्त के भीतर चरण-युगल उत्कीर्ण हैं, जिनके बीच में एक कमल बना है । कहा जाता है, ये चरण तांत्रिक मत के व्याख्याता सहजानन्दनाथ के हैं (? ) 11 यहाँ ईसा पूर्व द्वितीय- प्रथम शताब्दियों के, दाताओंों के नामोल्लेख सहित नौ ब्राह्मी अभिलेख हैं ।
मदुरै जिले के उत्तमपलैयम्, ऐवरमलै ( ऐयम्पलय्यम् ), कुप्पल्नत्तम् ( पोयगेमले) और पलनि ( पंचवर्नप्पाटुक्कै) की पहाड़ियों पर भी शय्याओं सहित या शय्याहीन गुफाएँ हैं । इन स्थानों के ब्राह्मी अभिलेखों की कोई सूचना नहीं है, तथापि वहाँ विद्यमान आठवीं-नौवीं शताब्दियों की मूर्तियों से स्पष्ट है कि ये स्थान जैनों से संबद्ध रहे हैं ।
रामनाथपुरम् जिला
१३-१४ - पिल्लैयर्पत्ति ( पाँचवीं शती ई० ) और कुलक्कुदि ( ईसा की तीसरी-चौथी शताब्दियाँ) -- उपर्युक्त जिले के तिरुप्पत्तुर तालुक में स्थित हैं, इनमें ब्राह्मी अभिलेख हैं पर दोनों ही स्थानों के गुफा मंदिर शैलोत्कीर्ण हैं और दोनों ही शैवमत से संबंध रखते हैं; जैनों से उनके प्राचीन संबंधों का प्रमाण बहुत ही कम मिलता है ।
1 एनुअल रिपोर्ट नॉन साउथ इण्डियन एपिग्राफी * 1907-08 भाग 2. अनुच्छेद 99. अभिलेख 1908 का 47. ( * आगे के पृष्ठों में एम० ई० आर० के नाम से उल्लिखित ).
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