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________________ अध्याय 7] पूर्व भारत ही कलिंग में जैन धर्म की नींव पड़ चुकी थी। यह बात कलिंग के चेदी राजवंश के महामेघवाहन कुल के तृतीय नरेश खारवेल (ईसा-पूर्व प्रथम शती; एक अन्य मत, जिसकी शुद्धता की संभावना कम है, के अनुसार ईसा-पूर्व दूसरी शती) के हाथी गुम्फा (भुवनेश्वर के निकट उदयगिरि पहाड़ी की गुफाओं में से एक) शिलालेख से सिद्ध होती है। इस शिलालेख में, जो अर्हतों और सिद्धों को नमस्कार के साथ प्रारंभ होता है, शक्तिशाली शासक यह बताता है कि वह कलिंग की उस तीर्थंकर मूर्ति को पुन: ले आया जो पहले एक नन्द राजा द्वारा बलपूर्वक ले जायी गयी थी। यह असंभव नहीं है कि कलिंग की यह पावन तीर्थंकर-मूर्ति मूलरूप से उदयगिरि पहाड़ी पर ही प्रतिष्ठापित रही हो और बाद में भी पुनः प्राप्त होने पर खारवेल ने उसकी पुनर्प्रतिष्ठा यहाँ की हो। यह निचली पहाड़ी और इसके समीपस्थ खण्डगिरि पहाड़ी अत्यंत प्राचीन समय से ही जैन धर्म का केन्द्र रही। इन दोनों पहाड़ियों को विहार के रूप में चयन करने का प्रधान कारण स्पष्ट ही इनकी ऐकांतिक स्थिति रही होगी जो ध्यान और साधु-जीवन के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान करती थी। साथ ही यह कलिंग की जनसंख्या-बहुल राजधानी (जिसकी पहचान शिशुपालगढ़ से की गयी है जो इन पहाड़ियों से १० किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में है) के भी निकट पड़ती थी, जहाँ मुनिगण सुविधापूर्वक धर्म-प्रचार के लिए जा सकते थे और वहाँ से भक्तगण मुनियों के प्रति अपनी भक्ति प्रकट करने और इस पवित्रतम स्थल पर पूजा करने हेतु पा सकते थे। महामेघवाहनों के शासनकाल में उदयगिरि और खण्डगिरि पहाड़ियों के जैन अधिष्ठान की बहुत उन्नति हुई। हाथीगुम्फा शिलालेख से यह स्पष्ट है कि खारवेल ने, जो जैन धर्मानुयायी था, बड़े उत्साह के साथ इस धर्म के प्रचार हेतु कार्य किया। अपने शासन के तेरहवें वर्ष में उसने न केवल कुमारी-पर्वत (आधुनिक उदयगिरि) पर जैन मुनियों के लिए गुफाएँ बनवायीं अपितु इन विहारों के समीप ही पहाड़ी के प्राग्भार पर एक मूल्यवान भवन (संभवत: एक मंदिर) का निर्माण कराया जिसके लिए सुदूर खानों से प्रस्तर-खण्ड लाये गये थे, और एक स्तंभ भी बनवाया जिसके केन्द्र में लहसुनिया मणि लगायी गयी थी। यद्यपि एक बड़ी संख्या में खारवेल-युग के विहार उपलब्ध हैं तो भी, शिलालेखों के अभाव में यह बता सकना संभव नहीं है कि कौन-सी विशेष गुफाएं इस शासक ने बनवायी थीं। राजकुल के अन्य व्यक्ति भी गुफाएं बनवाकर दान करने के पवित्र कार्य में सक्रिय भाग लेते थे। इस प्रकार, उदयगिरि की गुफा सं० १ (चित्र २३-२४ के ऊपरी तल, जिसे स्थानीय 1 इस शिलालेख का अनेक विद्वानों ने संपादन किया है और उसपर अपनी राय व्यक्त की है, जिनमें सरकार भी हैं. सरकार (दिनेशवंद्र). से नैक्ट इनिस्क्रप्शन्स विरिंग ऑन इण्डियन हिस्ट्री एण्ड सिबिलाइजेशन. 1965. कलकत्ता. पृ213-21. 2 उदयगिरि-खण्डगिरि गुफाओं के लिए द्रष्टव्य : फर्गुसन् (जेम्स) तथा बर्जेस (जेम्स). केव टेम्पल्स प्रॉफ इण्डिया. 1880. लन्दन. पृ 55-94. / मित्र (राजेन्द्रलाल). (एण्टिक्विटीज प्रॉफ उड़ीसा. भाग 2. 1880. कलकत्ता. पृ 1-46. / फसन् (जेम्स). हिस्ट्री ऑफ इण्डियन एड ईस्टर्न प्राकिटेक्चर. 1910, लन्दन. पृ9-18. | मित्रा (देबला). उदयगिरि एण्ड खण्डगिरि. 1960. नई दिल्ली. 77 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001958
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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