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________________ अध्याय 7 ] पूर्व भारत गया। प्राप्त पुरावशेषों में तीर्थकरों की सोलह मूर्तियाँ, एक अशोक वृक्ष और एक स्तंभ पर एक धर्म-चक्र (चित्र २१ ग) सम्मिलित हैं। इनमें से धर्म-चक्र की तिथि ईसा की पहली शताब्दी निर्धारित की जा सकती है। तीर्थंकरों की मूर्तियों में दस कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं जब कि छह पद्मासन ध्यान-मुद्रा में । यह मूर्ति-समूह इस तथ्य के कारण अत्यंत मूल्यवान हैं कि ये मूर्तियाँ लगभग चार सौ वर्षों के दीर्घकाल में निर्मित हुई हैं और ये प्रायोगिक यूग से लेकर गप्त-युग की सनिर्मित ललित मतियों के चर तक कांस्य मूर्तिकारों की कलात्मक उपलब्धियों का लेखा प्रस्तुत करती हैं। पद्मासन मूर्तियों में से दो, शैली के आधार पर, परवर्ती कूषाणयुग से आद्यगुप्त-युग तक की हो सकती हैं। शेष चार गुप्तयुग की हैं। सभी दिगंबर खड्गासन मूर्तियाँ कुषाण-पूर्व से लेकर गुप्त-काल तक की हैं। इनमें से कुछ मूर्तियाँ ढूंठ जैसी टाँगों, अपरिपक्व कौशल और बेडौल प्रतिरूपणवाली हैं तथा लोक-परंपराओं पर आधारित हैं । ये आदिम मूर्तियाँ कुषाणयुग से कुछ पहले की प्रतीत होती हैं। पटना-संग्रहालय की मूर्ति क्रमांक ६५३० (चित्र २२ क) कुषाण-कला का एक सुंदर उदाहरण है। विशाल वक्ष, गोल मुख और उन्मीलित नेत्र इसकी विशेषताएं हैं और यह मथुरा-कला की परंपरा में है। यहाँ भी टाँगों के निर्माण पर ध्यान नहीं दिया गया। तीसरी-चौथी शती में निर्मित मूर्तियों में (चित्र २२ ख) विभिन्न अंगों को आनुपातिक और सुदर रचना में पर्याप्त प्रगति परिलक्षित होती है। किसी भी मूर्ति में परिचय-चिह्न का निर्माण नहीं किया गया जिसके परिणामस्वरूप ऋषभनाथ और पार्श्वनाथ की पहचान क्रमशः उनकी जटाओं और फणावली से ही की जा सकती है। एक सुरक्षित मूर्ति के वक्ष पर श्रीवत्स-चिह्न स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। पश्चिम बंगाल यह निश्चयपूर्वक ज्ञात नहीं है कि बंगाल में जैन धर्म कब भलीभाँति प्रतिष्ठित हया। प्राचारांग सूत्र से विदित होता है कि लाढ (अर्थात् राढ) में जिसमें वज्जभूमि (वज्र भूमि) और सुब्भभूमि (सुहमभूमि) सम्मिलित थी, भ्रमण करते समय महावीर के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया गया। दिव्यावदान में उल्लिखित एक पाख्यान के आधार पर सामान्यतः यह माना जाता है 1 गुप्त (परमेश्वरी लाल), संपा. पटना म्युजियम कैटेलाग प्रॉफ एण्टिक्विटीज. 1965. पटना. पृ 116-17, प्रसाद (हरिकिशोर) जैन ब्रोन्जेज इन पटना म्युजियम. महावीर जैन विद्यालय गोल्डन जुबली वॉल्यूम. 1968. बम्बई. पृ 275-83. 2 [द्रष्टव्य : अध्याय 11 - संपादक] 3 जैनसूत्राज. भाग 1. प्राचारांग सूत्र. अनु : हरमन जैकोबी. सैक्रेड बुक्स ऑफ दि ईस्ट, 22. 1884. आक्सफोर्ड. पृ85. 75 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001958
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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