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जैन दार्शनिक परम्परा का विकास .
आचार्य मल्लवादी (जीवन परिचय)
आचार्य मल्लवादी जैनदर्शन के प्रसिद्ध दार्शनिक आचार्य हैं । नयचक्र टीकाकार सिंहसूरि (लगभग ८वीं शती) ने आचार्य मल्लवादी के लिए लिखा है कि :
जयति नयचक्रनिर्जितनिःशेषविपक्षचक्रविक्रान्तः ।
श्रीमल्लवादिसूरिर्जिनवचननभस्तलविवस्वान् ॥ अर्थात् नयचक्र स्वरूप चक्र के द्वारा जिसने समस्त स्याद्वाद विरोधियों को पराजित कर दिया है, ऐसे जिनवचन स्वरूपी आकाश में सूर्य के समान आचार्य मल्लवादी विजयवन्त हैं । इस श्लोक के आधार पर हम कह सकते हैं कि आचार्य मल्लवादी नयों के द्वारा समस्त वादियों को परास्त करने में कुशल थे । अपने मत की सिद्धि के लिए युक्तियों के दुर्भेद्य व्यूह की उपस्थिति करके प्रखर वादियों को भी वादयुद्ध में हरा देते थे, इसी कारण जैनदर्शन में वादी-प्रभावक के रूप में आचार्य मल्लवादी का नाम सुप्रसिद्ध है। आ० मल्लवादी के जीवन के विषय में हमें प्रभावक-चरित्र एवं प्रबन्धात्मक साहित्य में उल्लेख मिलता है ।२।
आ० मल्लवादी का गृहस्थावस्था का नाम मल्ल था । माता का नाम दुर्लभदेवी था । दो बड़े भाई जिनयश एवं यक्ष थे. । वे गुजरात में वलभीपुर नामक नगर के रहनेवाले थे ।
१. द्वादशारं नयचक्रं टीका, पृ० १. २. आचार्य श्री मल्लवादी सूरिकथा-भद्रेश्वरसूरि कृत कहावली में,
- मल्लवादिकथानकम्-प्रबन्ध-चतुष्ट्य में, - मल्लवादिसूरिचरितम्-प्रभावक चरित में, -- श्रीमल्लवादिप्रबन्धः-प्रबन्धकोश में, - मल्लवादिप्रबन्धः-प्रबन्धचिन्तामणि में । उपरिनिर्दिष्ट सभी ग्रन्थों में वर्णित मल्लवादी की कथा को द्वादशारं नयचक्रं के तृतीय भाग के चतुर्थ परिशिष्ट में संग्रहीत किया गया है । द्वादशारं नयचक्र, पृ० ९०४-९१७
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