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________________ १५६ द्वादशार-नयचक्र का दार्शनिक अध्ययन की उत्पत्ति ही सम्भव नहीं होगी । किन्तु भाषा और उसके प्रयोग से होनेवाला अर्थबोध यही बताता है कि शब्द और उसके वाच्यार्थ में किसी न किसी प्रकार का सम्बन्ध है । शब्द और अर्थ में तादात्म्य-सम्बन्ध की मीमांसकों की अवधारणा चाहे हमें अमान्य हो किन्तु शब्द और अर्थ में किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नहीं है यह मानना भाषा के प्रयोजन को ही समाप्त कर देता है । इसके आधार पर भाषा की वाच्यता सामर्थ्य पर प्रश्न चिह्न लग जाता है । यही कारण था कि बौद्ध आचार्यों ने भाषा की उपयोगिता पर विचार करते हुए शब्द और उसके वाच्यार्थ के सम्बन्ध के प्रसंग में अपोहवाद की स्थापना की ।' उनका कथन है कि यद्यपि शब्द अपने वाच्यार्थ का कथन नहीं करता किन्तु वह उसके सम्बन्ध में अन्य वाच्यार्थों का निषेध करता है । इसका फलितार्थ यह है कि अपार की अवधारणा भी शब्द के वाच्यार्थ के निर्धारण में सहयोग तो अवश्य ही करती है । शब्द और उसके वाच्यार्थ को लेकर बौद्ध परम्परा जिस अपोहवाद का प्रतिपादन करती है, उसकी मूलभूत मान्यता यह है कि शब्द वाच्य विषय के सन्दर्भ में अन्य अर्थों का निषेध करके शब्द के वाच्यार्थ के समीप अवश्य पहुँचा देता है। इस सिद्धान्त के अनुसार 'गो' शब्द का अर्थ इतना ही है कि अश्व नहीं है । महिष नहीं है आदि । मल्लवादी ने अपने ग्रन्थ द्वादशार नयचक्र में इस अपोहवाद की अवधारणा की विचारणा की है ।२।। बौद्धों के इस अपोहवाद के विरोध में मीमांसकों का दृष्टिकोण आता है जो यह मानकर चलता है कि शब्द और अर्थ में तादात्म्य सम्बन्ध है । शब्द और उसका वाच्यार्थ एक ही है । इस सिद्धान्त के अनुसार शब्द में स्वतः ही अपने वाच्यार्थ का बोध करने का सामर्थ्य होता ही है क्योंकि वे दोनों अभिन्न होते हैं । जैन और बौद्ध दार्शनिकों ने इस मत की समीक्षा करते हुए यह कहा है कि यदि शब्द और अर्थ में पूर्णतः तादात्म्य है तो फिर अग्नि शब्द के उच्चारण से या श्रवण से जलन की अनुभूति होनी चाहिए । मोदक शब्द के उच्चारण या श्रवण से निपृत्व की अनुभूति होनी चाहिए, किन्तु प्रत्यक्ष १. द्वादशारं नयचक्रं, पृ० ६०७. २. वही, पृ० ६०७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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