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________________ आत्मा की अवधारणा १५१ कर्ता कहा है । साथ ही यह जानना चाहिए कि वह ज्ञाता भी है और यदि वह ज्ञाता है तो वह स्वतन्त्र भी है । आत्मा को अनिष्ट का आपादन नहीं करने के कारण विद्वान् राजा के कारण स्वतन्त्र कहा गया है । आत्मा सम्बन्धी इन अवधारणाओं के विरोध में यह कहा जा सकता है कि यदि आत्मा को ज्ञाता और स्वतन्त्र नहीं माना जाता तो वह निद्रावस्था को प्राप्त व्यक्ति के समान वह कोई क्रिया भी नहीं कर सकता। आत्मा में स्वतन्त्रता और कर्तृत्व दोनों को स्वीकार करना आवश्यक है अन्यथा नियतिवाद का प्रश्न उपस्थित होगा । पुनः यदि आत्मा को कर्ता नहीं माना जायेगा तो फिर आत्मा में और अचेतन सत्ता में कोई अन्तर नहीं रह जायेगा। अत: यदि हम आत्मा को कर्ता नहीं मानेंगे तो उसे अचेतन मानना होगा। स्वतन्त्रता और कर्तृत्व आत्मा के दो ऐसे स्वरूप हैं जिनके अभाव में आत्मा के स्वरूप में हानि होती है । यदि आत्मा को कर्त्ता मानकर भी स्वतन्त्र नहीं मानते हैं तो फिर उसके कर्तृत्व का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता है, और पुनः नियतिवाद का प्रसंग आता है, क्योंकि फिर नियति को ही कर्ता मानना पड़ेगा । स्वतन्त्रता और कर्तृत्व यह दोनों ऐसी अवधारणा हैं कि जिनके अभाव में बन्धन और नियति के उत्तरदायित्व की व्याख्या सम्भव नहीं है क्योंकि कोई भी व्यक्ति किसी अच्छे-बुरे कार्य के लिए तब ही उत्तरदायी हो सकता है जब उसने वह कार्य किया हो । मात्र इतना ही नहीं उसके लिए यह भी आवश्यक है कि उसने वह कार्य स्वतन्त्ररूप से किया हो । क्योंकि जो कार्य बाध्यता के आधार पर किया जाता है उसके लिए व्यक्ति को उत्तरदायी नही माना जा सकता है । एकान्तरूप से नियति को स्वीकार करने पर न केवल पुरुषार्थ की हानि होगी अपितु समस्त नैतिक और धामिक साधनाएँ भी निरर्थक हो जायेंगी । यद्यपि आत्मा को पूर्णतः स्वतन्त्र भी नहीं माना जा सकता क्योंकि उसे हम पूर्णतः स्वतन्त्र मानेंगे तो कर्म नियम की व्यवस्था समाप्त हो जायेगी और उसी स्थित में नैतिक उत्तरदायित्व की व्याख्या सम्भव नहीं हो पायेगी । व्यक्ति के जीवन में वैसे अनेक तथ्य हैं जो उसके आचार और जीवन को प्रमाणित करते हैं । कारण, स्वभाव १. वही० पृ० १९२-१९३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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