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________________ १४८ द्वादशार-नयचक्र का दार्शनिक अध्ययन हैं कि जो सदा था, और सदा होता है वह भूत है । पुरुष शब्द की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि जो पुरी अर्थात् शरीर में आवास करता है वह पुरुष है। जो मिलता है और अलग-अलग होता है अथवा जो उत्पत्ति-विनाश को प्राप्त होता है वह पुद्गल है ।३ जीव में शरीर रूप से वह सब क्रिया में होती है इसीलिए उसको पुद्गल कहा है। आत्मा के लिए जन्तु शब्द की व्याख्या करते हुए सिंहसूरि कहते हैं कि जो जिस भाव को प्राप्त होता है, वह जन्तु है।४ पाँच इन्द्रिय मन्, वाक्, काय, तीन बल तथा आयु और श्वासोश्वास इन दस प्राणों को धारण करता है, वह प्राणी कहलाता है ।५ इन प्राणों के साथ जो जिया था और जीता है, जीव कहलता है | इस प्रकार हम देखते हैं कि यद्यपि आ० मल्लवादी के मूल ग्रन्थ में आत्मा के सभी पर्यायवाची शब्दों की स्पष्ट व्याख्या प्रस्तुत नहीं की किन्तु उनके टीकाकार सिंहसूरि ने आत्मा के लिए जिन-जिन शब्दों का प्रयोग होता है उन सबकी एक सम्यग् व्याख्या प्रस्तुत की है। आ० मल्लवादी ने द्वादशारनयचक्र में सर्वात्मवाद की अवधारणा को प्रस्तुत किया है । शुक्लयजुर्वेद से एक श्लोक को उद्धृत करते हुए कहते हैं कि यह सब-कुछ जो है, या और होगा वह पुरुष ही है। इस तरह सर्वात्मवाद के मत की स्थापना की गई है। यद्यपि हमें यह स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि यह मन्तव्य मल्लवादी की अपनी परम्परा का नहीं है किन्तु उन्होंने सर्वात्मवाद का १. भूतस्तथा सदा भवतीति वा । द्वादशारं नयचक्रं० पृ० १९० २. पुरिशयनात् पुरुषः । वही० पृ० १९० ३. पूरणाद गलनांच्च पुद्गलः पुमांसं गिलतीति वा पुद्गलः, जीव शरीरतया विभज्य भोक्तृभोग्यभावाद् वृद्धिहानिभ्यामुत्पत्तिविनाशाभ्यां पूरण गलनाभ्यामित्यर्थः । वही० पृ० १९० ४. जायते तैस्तै वैरिति जन्तुः । वही० पृ० १९० ५. पञ्चेन्द्रियमनोवाक्कायबलायुरुच्छासनिःश्वासाख्य दशप्राणधारणात् प्राणी जीव इति । वही० पृ० १९० ६. पुरुष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम् । उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ॥ शुक्ल यजु० सं० ३१.२, उद्धृत० द्वादशारं नयचक्रं, पृ० १८९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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