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हमने इस प्रबन्ध के अष्टम अध्याय में सामान्य और विशेष के सम्बन्ध में मल्लवादी के द्वारा प्रस्तुत अवधारणाओं को और उसकी समीक्षा को प्रस्तुत किया है ।
नवम अध्याय मुख्य रूप से आत्मा के अस्तित्व और उसके स्वरूप की समस्या से सम्बन्धित है । इस अध्याय में भारतीय दर्शन की आत्मा सम्बन्धी विभिन्न अवधारणाओं के सिंहावलोकन के साथ-साथ उनकी समीक्षा भी प्रस्तुत की गई है ।
दसवें अध्याय में मल्लवादी द्वारा प्रस्तुत शब्द और अर्थ के पारस्परिक सम्बन्ध और उस युग के विभिन्न मतवादों की समीक्षा की गई है ।
ग्यारहवाँ अध्याय शब्द की वाच्यता - सामर्थ्य या वक्तव्यता और अवक्तव्यता की चर्चा करता है । सत्ता की निर्वचनीयता और अनिर्वचनीयता सम्बन्धी विभिन्न मत और उनकी समीक्षा ही इस अध्याय का विवेच्य बिन्दु है ।
द्वादश अध्याय में जैनों की नय वर्गीकरण की शैली की विवेचना के साथ-साथ यह स्पष्ट किया गया है कि नयचक्र में किस प्रकार परम्परागत शैली का परित्याग करके नई शैली की उद्भावना की गई है ।
-शोधप्रबन्ध के अन्त में उपसंहार के रूप में ग्रन्थ में प्रस्तुत विभिन्न दार्शनिक समस्याओं के समाधान में नयचक्र के अवदान को स्थापित किया गया है ।
इस प्रकार इस शोधप्रबन्ध में हमने भारतीय दर्शन की विभिन्न दार्शनिक अवधारणाओं का मल्लवादी के द्वादशार नयचक्र के परिप्रेक्ष्य में एक मूल्याकंन किया है ।
इस शोधप्रबन्ध में हमने केवल उन्हीं समस्याओं पर विचार किया है. जो मल्लवादी के युग में अर्थात् पाँचवी शताब्दी में उपलब्ध थीं । यह सम्भव है कि परवर्ती कुछ दार्शनिक समस्याओं को इसमें स्थान न मिला हो किन्तु इसका कारण शोध - विषय की अपनी सीमा है ।
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