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________________ शब्द पृष्ठ नं. | शब्द पृष्ठ नं. | शब्द पृष्ठ नं. संधिपत्त २/४५ | संवुड अणगार १/२१६ हरदसमो २/२३० संपराइय कम्म २/२२० |संवुडकम्म हरिणमिग २/४४२ संपराइया १/४८९,४९० | संवुडचारिण १/१६९ | हरिमंथ १/१७५ संपराइया किरिया २/१२९ | संवेग १/१३३,१३४ हरिय(त) १/२४३,२८५,५०१, संपागडपडिसेवी २/३५२ संवेगणी २/३९६ ५०३; २/३०४ संपातिमा (पाणा) १/२३८,२३९,२४१ संसट्ठचरए २/३०६ हरियमालिय १/४१९ संबुकावट्ट (1) १/२८७,५४३; | संसट्ठ कप्पिए २/३०८ हरियवीणिय १/४६१,४६२ २/३०४,३१९ संसट्ठपिंड १/६०० हरियसुहुम १/२८६,२/९० संभव १/३ | संसट्ठोवहड १/५४२ हलिअंड १/२८७ संभिण्णसोय १/२२५ | संसत्त २/२८३,२८४,३९५ | हल्लोहलिअंड २/२८७ संभोइय २/२६३,२६४,२७७,३६२ संसत्त तवोकम्म २/१७७ हरिवस्स १/२८ संभोग २/२६२ | संसप्पगा पाणा २/२९८ हरिवंसकुल १/५५४ संभोगकाल २/४४२,४४४,४४५, | संसयकारिणी १/५१४ हरिसेण १/१९९ ४४७,४४८,४७० संसार १/१६३,१८२,१९१,२१४,२४५ हाडहडा २/३५३ संभोगपच्चक्खाण १/१३४,१३५, | संसारकांतार हार १/४१८,४१९,६५४ २/११८,२६५ |संसारचक्कवाल १/१६३ हारपुडपाय १/७११ संभोग(प)वडिया २/२७२,२७३,२७४ | संसारभीरू १/३२७ हास १/३००; २/४७१ संभोगवत्तिया १/२९५ संसारमग्ग १/१३५ हासणिस्सिया १/५१३ संमद्दा १/७३४ | संसारसमावन्न १/४५६ हासविवेग १/२९७ सम्मुच्छिमा १/२४४,२४५ | संसारविओसग्ग २/४०६,४०७ हासा २/४३५ संमेल १/६३०,६३१ | संसेइम (1) १/२४४,२४५,६४५,६४६; हितकारगा ठाणा २/२८८ संमोह २/१७६ २/२९५ | हिमय १/२८७ संमोहत्त २/१७७ संसेदय १/२३९ हिमवन्त संलेहणा करणकाल २/२९६ | | संसेयया १/२२९,२४९ | हियमाणुलोमिय १/५१२ संवर १/४१,१२५,१२६,१४२,१६०, | हत्थकम्म १/४१५ हिरण्ण १/१३८,४३२,६५४; २/३० १७१,१९०,२०६,२०७,२०८,२१२,२१५, हत्थकम्मकरण १/४१५ | | हिरण्णणाय १/७११ २२३,३०४,३०६,३०७,७५३;२/६७,६८, हत्थच्छिण्ण १/५३० | हिरण्ण-सुवण्ण-पमाणाइक्कम २/१२७ १३९,१४३,२०० हत्थबीणिय १/४६१ हिरिम १/८३ संवरदार १/२१२,२१३,२१५,२८४, हत्थसंजय १/७४८ हिरिवत्तिय १/६९० ३००,३१२,४२६,४७५,४७६ हत्थाइपधोवण १/४६५ | हिंगोल १/६३० संवरबहुल २/१२० हत्थाइ पधोवण निसेह २/३२२|| हिंसप्पयाण २/१२८ संवर भावणा २/४५४ १/५५३ | हिंसाणुबंधी १/४०३ संवरवरपादप १/४३१ हत्थिणापुर १/५०२ हिंसाणुमोयण संवरसंवुड २/४८ हडिबंधण १/५०२ हीरमाण १/६३०,६३१ संवास करण १/४२१ | हड्डमालिय १/४१९ | हीलियवयण १/३००,५२६ संविद्धपह २/४५९ | हम्मियतल संविभागसील १/३०६ ७००,७१८,७१९ | हेमन्त १/६४८,६६५,६६६,६८३; संवुड १/१६१,४९०,५४५, हय १/४३२ २/७६,८९,२५४,२५५,२५६ २/३६,४७,६४ हरतणुय १/२८७ हेमवय १/२८ हत्थि २/६६ हुत P-180 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001951
Book TitleDravyanuyoga Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year2004
Total Pages814
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_related_other_literature
File Size22 MB
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