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________________ १/१०४ शब्द पृष्ठ नं. | शब्द पृष्ठ नं. | शब्द पृष्ठ नं. वासुपुज्ज विज्जुदेव १/५२६ | विभंगणा (ना)ण १/६० वाहण १/१७५ विजय (राजा) १/१९९| विभंगणाणोप्पत्ति वाहणगिह १/४२२ | विणओवएस २/४४ |विमल १/३,२२३ वाहणसाल १/४२२ विणय | विमुत्ती १/२२२ वाही २/४६९ | विणय (ज्ञानाचार) १/५७,७१,१००, विम्हावण २/२२५ विइकिट्ठ २/२८९ १०४,१२६,१६८,३११,४३१ | वियड १/५६५ विइगिट्ठकाल १/६४,६५ | विणय पडिवण्ण पुरिस १/८१,८२ | वियडगिह १/६४९; २/३२० विइ (ति) गिच्छा १/१२३,१३७, | विणयपडिवत्ती १/७३,७४,१०४ | वियडदत्ती १/६४२ ४८०; २/१२३ | विणय बेयावच्च पडिमा २/३४९ वियडभाव २/२०० विइ (ति)गिच्छासमावण्ण १/४८२,४८३ | विणयसमाही १/८६ वियतकिच्च पायच्छित्त २/३५२ विउक्कस्स १/१८० | विणयसुद्ध २/११४ | वियत्त (व्यक्त गणधर) विउलमई १/२२४ | विणयसंपण्ण वियत्त १/१८३,१८४,१८५,१८६ विउलुत्तम १/१४४/ विणयहीण वियंतकारय १/४७८ विउसग्ग २/३५०,४०६-४०८विण्णवणित्थी २/४४१ वियागरत्त १/१०५ विउसग्ग पडिमा २/३१६ | विण्णाण | वियारभूमि १/६८३,६८४,७३०,७३१, विउसग्गारिह २/३५२ विण्णाणफल १/१०४ ७३६,७४६;२/७५,७८,८८,१४९,२५६, विओसविय १/५२६ | विण्णाता २/४६४ २५७,२९१ विओसविय पुणो उवीरित्तए १/३०० | विष्णू २/३४,३५ | वियाल १/४७९ विकहा २/१७६ विणियट्टणाफल १/४५६ | वियाह (भगवती) २/२५३ विक्खित्ता १/७३४ | विणियट्ठणया १/१३४,१३५,४५६ | वियाहचूलिया २/२५३ विखेवणा विणय १/७३,७४ | विणिविट्ठचित्त १/४५४ | विरइठाण १/२१४ विक्खेवणी २/३९६ | विणीत (य) १/६०,९१,९२ | विरयगामधम्म १/४२४,४२५,४२६ विग १/५५३ | विणीय लक्षण १/८२ विरती १/२२२ विगइ १/५४२; २/८०,८१ | वितिगिच्छा १/१३७ विरसजीवी विगइ भोई १/६१४ | वित्थार (रूइ) १/१२६ | विरसाहार २/३०९ विगतोदय १/५०८,५०९ | विदू १/१८८ | विराग(ता) या १/१३४; २/३४ विगयमिस्सिया १/५१४ | विदेह १/१९९ | विराल विगलिन्दियया १/४७ | विद्धी १/२२२| विरालिय १/५८३ विगलिन्दिया १/९१ | विद्धंसणधम्म १/७५५ विराहग (य) १/५१२,५१३; विगहगइ पव्वज्जा विपरिणामधम्म १/५१२ | २/१४७-१५२,१५७,१६२,१६३,१६६,१६७, विगही १/३०० | विष्पमाद १/१०५ | १६८,१६९,१७०,१७३,१७४,१७५,१७६ विगिट्ठभत्तिय २/८५ | विपरियासण २/२२५ | विराहगा अकाम - विग्गई निज्जूहण २/२९६ | विप्पोसहिपत्त १/२२४ परिकिलेसगा २/१६३-१६५ विग्घकरा ठाणा २/२०६] विभज्जवाद १/१०७ |विराहगा अत्तुक्कोसिया समणा २/१७४ विजहणा २/२३० विभवित्तए २/६१ | विराहगा आजीविया २/१७४ विज्जा १/६३,२०६; २/२८ |विभूसावत्तिय २/६१ | विराहगा कन्दप्पिया समणा २/१६९ विज्जाइ पउंजण २/२२३ | विभूती १/२२२ | विराहगा णिण्हगा २/१७५ विज्जाचरण १/१६९; २/६५,४१२,४१३ | विभूसाणिसेह १/३३१ विराहगा पडिणीय समणा २/१७३,१७४ विज्जाचारणलद्धी २/४१२ |विभूसाणुवाई १/३३१ | विराहगा परिव्वायगा २/१७०-१७३ विज्जापिण्ड १/५७४ | विभूसावडिया १/३४२,३४३,३४४, | विराहगा बाल तवस्सी २/१६७ विज्जाहर १/२२५ ३८५-३९०,४१६,४१७ | विराहगा भद्द पगइ जणा २/१६५-१६७ विज्जुत १/६८ | विभंग अन्नाणकिरिया १/१६४ | विराहगा वाणपत्था २/१६८,१६९ २/३१० P-172 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001951
Book TitleDravyanuyoga Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year2004
Total Pages814
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_related_other_literature
File Size22 MB
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