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________________ २३८४ ४. चउरंससंठाणपरिणया वि, आयत संठाणपरिणया वि' । ५. ३. जे फासओ गरूयफासपरिणया ते वण्णओ - १. कालवण्णपरिणया वि, २. नीलवण्णपरिणया वि, ३. लोहियवण्णपरिणया वि, ४. हालिद्दवण्णपरिणया वि, ५. सुक्किलवण्णपरिणया वि । गंधओ - १. सुब्भिगंधपरिणया वि २. दुब्भिगंधपरिणया वि । रसओ- १. तित्तरसपरिणया वि, २. कडुयरसपरिणया वि, ३. कसायरसपरिणया वि, ४. अंबिलरसपरिणया वि, ५. महुररसपरिणया वि । फासओ - १. कक्खडफासपरिणया वि, २. मउयफासपरिणया वि, ३. सीयफासपरिणया वि, ४. उसिणफासपरिणया वि, ५. निद्धफासपरिणया वि, ६. लुक्खफासपरिणया वि । ठाणओ - १. परिमंडलसंठाणपरिणया वि, २. वट्टसंठाणपरिणया वि, ३. तंससंठाणपरिणया वि, ४. चउरंससंठाणपरिणया वि, ५. आयतसंठाणपरिणया विरे । ४. जे फासओ लहुयफासपरिणया ते वण्णओ - १. कालवण्णपरिणया वि, २. नीलवण्णपरिणया वि, ३. लोहियवण्णपरिणया वि, ४. हालिद्दवण्णपरिणया वि, ५. सुक्किलवण्णपरिणया वि । गंधओ - १. सुब्भिगंधपरिणया वि, २. दुब्भिगंधपरिणया वि । १. फासओ मउए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओ विय ॥ - उत्त. अ. ३६, गा. ३५ For Private Jain Education International ४. यतुरस्त्रसंस्थान - परित पड़ा छे, ५. खायतसंस्थान - परिक्षत या छे. ૩. જેઓ સ્પર્શથી ગુરૂસ્પર્શ - પરિણત છે तेस्रो वर्षाथी - १. द्रृष्णवर्श- परिशत भए। छे, २. नीलवर्ण - परिक्षत पश छे, 3. वर्ग- परिशत पए। छे, ४. पीतवर्श - परिशत भए। छे, દ્રવ્યાનુયોગ ભાગ-૪ ५. शुडसवर्ण - परिक्षत पड़ा छे. तेस्रो गंधथी - १. सुगंध- परिक्षत पए। छे, २. दुर्गंध - परिात पए। छे. तेस्रो रसथी - १ तिउतरस परिणत पए। छे, - २. उटुरस - परित भए। छे, उ. द्रुषायरस - परिात पए। छे, ४. अम्लरस - परिात पए। छे, ५. मधुररस - परिक्षत पा छे. तेस्रो स्पर्शथी - १. ईशस्पर्श परिात पा छे, - २. मृहुस्पर्श - परिक्षत पए छे, 3. शीतस्पर्श - परिक्षत यश छे, ४. उष्णस्पर्श - परिात पाछे, ५. स्निग्धस्पर्श - परिक्षत पए छे, 5. रुक्षस्पर्श - परिणत भएर छे. तेस्रो संस्थानथी - १. परिमंडण संस्थान - परिषत भए। छे, - २. वृत्तसंस्थान परिात पए। छे, 3. त्र्यस्त्रसंस्थान - परिशत पाछे, ४. यतुरस्त्र संस्थान - परिक्षत पाछे, ५. आयतसंस्थान - परिषत पत्र छे. ૪. જેઓ સ્પર્શથી લઘુસ્પર્શ - પરિણત છે तेखो वर्शथी - १. द्रृष्णवर्श परिक्षत पशु छे, २. नीलवर्ण परिशत भए। छे, 3. रतवर्श परिक्षत पए। छे, ४. पीतवर्श- परिशत पत्र छे, पशुसवर्ण - परिशत भए। छे. तेस्रो गंधथी - १. सुगंध परिक्षत पत्र छे, २. हुर्गंध - परिक्षत पए छे. २. फासओ गरूए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओ विय ॥ - उत्त. अ. ३६, गा. ३६ Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001951
Book TitleDravyanuyoga Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year2004
Total Pages814
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_related_other_literature
File Size22 MB
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