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## Pindaniyukti
**296.** Rice, barley, and sattu, along with beans, lentils, and dried peas.
**297.** Sprouts, vegetables, and kangu, along with soup, gruel, and khadya.
**298.** Kheer, yogurt, and jau, along with oil, ghee, and fermented food.
**299.** Food touched by another's hand, or food left over from a meal.
**300.** Food eaten with a disturbed mind, or food rejected after being taken into the mouth.
**301.** Spitting out hot food, or experiencing burning sensation in the mouth.
**302.** Food consumed with a desire for its name, or food consumed with a desire for its taste.
**302/1.** Food consumed for its benefit, or food consumed for its sustenance.
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पिंडनियुक्ति
२९६. ओदण-मंडग'-सत्तुग', कुम्मासा रायमासरे कल वल्ला।
तूवरि मसूर मुग्गा, मासा य अलेवडा सुक्का ॥ ६२३ ॥ २९७. उब्भिज्ज' पेज्ज कंगू, तक्कोल्लण-सूव-कंजि-कढियादी।
एते उ अप्पलेवा, पच्छाकम्मं तहिं भइयं ॥ ६२४ ॥ २९८. खीर-दहि जाउ'१ कट्टर, तेल्ल-घतं-फाणितं सपिंडरसं।
इच्चादी बहुलेवं, पच्छाकम्मं तहिं नियमा॥ ६२५ ।। २९९. संसट्ठेतरहत्थो, मत्तो 'वि य'१२ दव्व सावसेसितरं।
एतेसु१३ अट्ठ भंगा, नियमा गहणं तु ओएसु ॥ ६२६ ॥ ३००. सच्चित्ते अच्चित्ते, मीसग तह छड्डुणे५ य चउभंगो।
चउभंगे पडिसेधो, गहणे आणादिणो दोसा।। ६२७ ॥ उसिणस्स छड्डणे१६ देंतओ य७ डझेज्ज कायदाहो'८ वा।
सीतपडणम्मि काया, पडिते मधुबिंदुदाहरणं ॥ ६२८ ॥ ३०२. नामं ठवणा दविए, भावे घासेसणा मुणेयव्वा।
दव्वे मच्छाहरणं, भावम्मि य होति पंचविहा॥ ६२९ ॥ ३०२/१. चरितं व कप्पितं वा, आहरणं दुविधमेव नातव्वं ।
अत्थस्स साहणट्ठा, इंधणमिव ओदणट्ठाए ॥ ६३०॥
१. मंडण (अ, ब, मु)।
१६. छिडणे (स)। २. सत्तु (क)।
१७. व (क)। ३. 'राजमाषा:'-सामान्यतश्चवला: श्वेतचवलिका वा (मवृ)। १८. “डाहो (अ, जीभा १६०३)। ४. 'कला'-वृत्तचनका सामान्येन वा चनकाः (मवृ)। १९. 'दुआह (अ, बी, मु, जीभा), कथा के विस्तार ५. तुवरी (अ, बी), तूयरि (मु)।
___ हेतु देखें परि. ३, कथा सं. ४९। ६. x (ब)।
२०. नेयव्वं (स)। ७. उन्भज्ज (स), उब्भिज्जि (क), 'उद्भेद्या'- २१. ओनि ५४१,३०२/१-५-ये पांचों गाथाएं ३०२ के वस्तुलप्रभृतिशाकभर्जिका (मवृ)।
तृतीय चरण 'दव्वे मच्छाहरणं' की व्याख्या रूप हैं। ८. कूरो (बी)।
३०२/१ गाथा में भाष्यकार ने प्रसंगवश आहरण के ९. उल्लणं-येनौदनमार्दीकृत्योपयुज्यते (मवृ)।
दो भेदों का उल्लेख किया है। ३०२/२-४-इन १०. सूपो-राद्धमुद्गदाल्यादिः (मवृ)।
तीन गाथाओं में मच्छआहरण को संवाद-शैली में ११.जाउ-क्षीरपेया (मवृ)।
विस्तृत रूप से प्रस्तुत किया है तथा ३०२/५ वीं १२.च्चिय (क)।
गाथा में उपसंहार किया है। व्याख्यात्मक होने के १३. एएसि (ला, स), एएसु (मु)।
कारण इनको मूल नियुक्तिगाथा के क्रमांक में नहीं १४. ओजस्सु-विषमेषु भंगेसु प्रथमतृतीयपंचमसप्तमेषु जोड़ा है। जीभा में केवल उपनय रूप में साधु (मवृ), तु. बृभा १८६८।
के साथ तुलना करते हुए दो गाथाओं का उल्लेख १५.छंडणे (अ, बी)।
है (जीभा १६०६, १६०७)।
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