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पिंडनियुक्ति
१३६. पाहुडिभत्तं भुंजति, न पडिक्कमते य तस्स ठाणस्स।
एमेव अडति बोडो', लुक्कविलुक्को जह कवोडो॥ २९१ ॥ दारं ॥ १३६/१. लोयविरलुत्तिमंगं, तवोकिसं जल्लखउरियसरीरं।
जुगमेत्तंतरदिटुिं, अतुरियऽचवलं सगिहमेंतं ॥ २९२ ॥ १३६/२. दट्ठण तमणगारं, सड्डी संवेगमागता' काइ।
विउलन्नपाण घेत्तूण, निग्गता निग्गतो सो वि॥ २९३ ॥ १३६/३. नीयदुवारम्मि° घरे, न सुज्झते एसण१ त्ति काऊणं।
नीहम्मिए अगारी, अच्छति विलिया व१२ गहितेणं ॥ २९४ ॥ १३६/४. चरणकरणालसम्मी२, अन्नम्मि य आगते गहित पुच्छा।
इहलोगं परलोगं, कहेति चइंउं इमं लोगं ॥ २९५ ॥ १३६/५. नीयदुवारम्मि घरे, भिक्खं नेच्छंति एसणासमिता।
जं पुच्छसि मज्झ कहं, कप्पति लिंगोवजीवीऽहं५ ॥ २९६ ॥ १३६/६. साधुगुणेसणकहणं, आउट्टा तस्स तिप्पति१६ तहेव ।
कुक्कुडि८ चरंति एते, वयं तु चिण्णव्वयार बितिओ२२ ॥ २९७ ॥ १३७. पाओकरणं दुविधं, पागडकरणं पगासकरणं च।
पागड संकामण 'कुड्डदारपाते य'२३ छिन्नेणं ॥ २९८ ॥
१. पोडो (ला, ब), बोलो (अ, बी)। १०. निय' (अ, बी)। २. कमोडो (ला, क, ब), कमेडो (जीभा १२३७)। ११. एसणु (अ, बी)। ३. "विरलत्तु (ला), 'लुत्तमंगं (मु. क), अत्रोत्तमाङ्ग- १२. वि (स)।
शब्देनोत्तमाङ्गस्थाः केशा उच्यन्ते (म)। १३. “करणपरिहीणे (ला, ब, स), "लसम्मि य (मु)। ४, "दिट्ठी (अ)।
१४. णच्छंति (ब)। ५. "हमंतं (ला, ब), "हमिंतं (मु, बी, क), १३६/१- १५. “जीविहं (अ, बी, ला, स)।
६-ये गाथाएं प्रादुष्करण से संबंधित कथानक को १६. कप्पइ (क), तप्पइ (अ, ब), तेपते क्षरति ददाति प्रकट करने वाली हैं। गाथा १३७ में निर्यक्तिकार स्मेति भावार्थः (मव)। प्रादुष्करण की व्याख्या प्रस्तुत करते हैं। द्वार के १७. तह वि (ला, ब, स)। प्रारंभ में ये गाथाएं स्पष्टतया भाष्यकार की होनी १८. कुक्कुड (क, स)। चाहिए।
१९. चरितं (ब)। ६. य अण. (मु, क, ला, ब, स)।
२०. ति (अ, बी)। ७. 'माइया (अ, बी)।
२१. चिण्णे वया (अ, बी)। ८. कइ वि (ला, ब)।
२२. बीओ (अ, क, मु)। ९. उ (ब, स), य (अ, क)।
२३. 'दारमाले य (अ, बी)। २४. छिन्ने व (म्), छिन्ने य (क)।
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