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सानुवाद व्यवहारभाष्य दिनों की। यह स्थापना-आरोपणा १८ मासों से निष्पन्न है। यह यही है। केवल उसमें एक से भाग देना होता है। प्रथम कृत्स्ना आरोपणा है।
३८७. पढमा ठवणा पक्खो, पढमा आरोवणा भवे पंच । ३८४. पढमा ठवणा वीसा, ततिया आरोवणा उ पणुवीसा। चोत्तीसामासेहिं, एसा पढमा भवे कसिणा ।।
तेवीसा मासेहिं पक्खो तु तहिं भवे झोसो।। (दूसरे स्थान में) प्रथम स्थापना पाक्षिकी, प्रथम आरोपणा
प्रथम स्थापना २० दिनों की तथा तीसरी आरोपणा २५ के ५ दिन। यह स्थापना-आरोपणा ३४ मास की प्रतिसेवना से दिनों की। यह स्थापना-आरोपणा २३ मास से निष्पन्न है। तथा निष्पन्न होती है। यह प्रथमा कृत्स्ना आरोपणा है। इसमें झोष परिमाण है एक पक्ष का। यह भी अकृत्स्ना आरोपणा ३८८. पढमा ठवणा पक्खो, बितिया आरोवणा भवे दस उ। है, क्योंकि इसमें झोष है।
अट्ठारसमासेहिं, पंच य राइंदिया झोसो ।। ३८५. एवं एता गमिता, गाहाओ होंति आणुपुव्वीए । प्रथम स्थापना पाक्षिकी, द्वितीय आरोपणा दस दिन की।
एतेण कमेण भवे, चत्तारिसता उ पण्णट्ठा ।। यह १८ मास की प्रतिसेवना से निष्पन्न होती है। इसमें ५ रात
इस प्रकार एतद्गमिका-इस प्रकार की गाथाएं क्रमशः दिन का झोष होता है। अन्यान्य भी होती हैं। (जैसे-प्रथम स्थापना बीस दिनों की, ३८९. पढमा ठवणा पक्खो, ततिया आरोवणा भवे पक्खो। चौथी आरोपणा तीस दिनों की। यह स्थापना-आरोपणा २६
बारसहिं मासेहिं, एसा बितिया भवे कसिणा ।। मास से निष्पन्न होती है। इसमें झोष है २० रात-दिन का। इस प्रथम स्थापना पाक्षिकी, तीसरी आरोपणा पाक्षिकी। यह क्रम से ४६५ गाथाएं होती हैं।
बारह मास की प्रतिसेवना से निष्पन्न होती है। यह दूसरी कृत्स्ना ३८६. तेत्तीसं ठवणपदा, तेत्तीसीसारोवणाय ठाणाई। आरोपणा है।
ठवणाणं संवेहो, पंचेव सया तु एगट्ठा ।। ३९०. एवं एता गमिता, गाहाओ होति आणुपुव्वीए ।
दूसरे स्थान में स्थापनापद हैं ३३ और आरोपणा के स्थान एतेण कमेण भवे, पंचेव सता उ एगट्ठा ।। हैं ३३। स्थापना पदों का आरोपणा के साथ संवेध ५६१ होते इस प्रकार की गाथाएं आनुपूर्वी के उक्त क्रम से अन्यान्य हैं। (३३४१७५६१)।
भी होती हैं। उनकी संख्या है ५६१।" ३८६/१. ठवणारोवण वि जुया, छम्मासा पंचभागभइया जे। ३९१. पणतीसं ठवणपदा, पणतीसारोवणाइ ठाणाई ।
रूवजुया ठवणपया, तिसु चरिमा देसभागेक्को ।। ठवणाणं संवेधो, छच्चेव सता भवे तीसा ।।
स्थापना और आरोपणा के दिवसों से विरहित छह मासों तृतीय स्थान में स्थापनापद हैं ३५ और आरोपणा स्थान हैं के दिनों में पांच का भाग देने पर जो अंक लब्ध हैं, वे रूपयुत ३५। स्थापनापदों के आरोपणापदों के साथ संवेध संख्या है करने पर जितने होते हैं उतने ही स्थापना पद और वही गच्छ ६३०। संख्या है। यह तीनों आद्य स्थानों में द्रष्टव्य है। चौथे स्थान में भी १. देखें गाथा ३६४ तथा वृत्ति।
प्रक्षित करने पर १६० हुए। १० का भाग देने पर १६ आये। ये १६ २. प्रथम स्थापना में प्रथम स्थान के २० दिन, प्रथम आरोपणा के १५ मास हुए। स्थापना का पूर्वप्रकार से एक मास। आरोपणा के दस
दिन। दोनों को मिलाने पर ३५ दिन हुए। इनका छह मास के १८० दिनों में ५ का भाग देने पर दो अंक आये। इनको रूपहीन अर्थात् २ दिनों में से निकाल देने पर १४५ दिन शेष रहे। इसमें पांच का भाग कम करने पर शेष रहा शून्य। इसका एक मास। इन दोनों मासों को देने पर २९ आए। रूपयुत अर्थात् एक मिलाने पर तीस हुए। यह १६ में प्रक्षिप्त करने पर १८ मास हुए। प्रथम स्थान के गच्छ का अंक ३० है। द्वितीय स्थान में प्रथम स्थापना ४. स्थापना और आरोपणा के दिनों को १८० में से निकालने पर १५० १५ दिन, प्रथम आरोपणा ५ दिन। दोनों को मिलाने पर २० दिन। शेष रहें। इसमें आरोपणा के दिनों का १५ भाग देने पर १० मास इनको १८० में से निकालने पर १६०। इसमें पांच का भाग देने पर प्राप्त हुए। स्थापना और आरोपणा का एक-एक मास प्रक्षिप्त करने ३२। इसको रूपयुत करने पर ३२+१=३३ हुए। यह द्वितीय स्थान पर १०+२-१२ मास हुए। किन मासों से कितना ग्रहण किया ? प्रत्येक का गच्छांक है ३३। इसको एक से गुणन करने पर ३३ आए।१ से से १५-१५ दिन। १२ मास को १५ से गुणन करने पर १८० हुए। हीन करने पर ३३-१-३२ अंक। इसमें एक मिलाने पर पुनः ३३ ५. स्थापना स्थान १५। आरोपणा स्थान ५। इनमें पांच-पांच के प्रक्षेप हुए। यह अंतिम धन है। वह गच्छार्ध से गुणित करने पर से स्थापना का ३३वां स्थान १७५ होगा तो आरोपणा का १६५। ३३४१७-५६१ हुए।
स्थापना दिनों में पांच-पांच की वृद्धि के साथ-साथ आरोपणा में ३. जैसे स्थापना के १५, आरोपणा के १०। इनको १८० में से निकाल एक-एक का परिहार करने पर तैतीसवां स्थापना स्थान १७५ होगा
देने पर १५५ शेष रहे। आरोपणा के दिनों से-१० से भाग देने पर तो आरोपणा का स्थान एक दिन का होगा। इनका समाकलन ५६१ वह शुद्ध नहीं होता, क्योंकि कुछ शेष रह जाता है। इसलिए उसमें ५ (३३+३२+३१+३० से लेकर एक तक ५६१) होगा।
प्रकार की नाक, पंचेव सा आणुपुवीए।
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