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पहला उद्देशक
बीस रात-दिन (फिर पांच-पांच की वृद्धि से ) तीसवीं उत्कृष्ट स्थापना होती है - १६५ दिन रात की । (शेष मध्यम स्थापना होती है।
३५९. आरोवणा
जहन्ना, पन्नरराईदियाइ
पुणाई | उक्कोसं सट्ठिसतं, दोसु वि पक्खेवगो पंच ।। जघन्य आरोपणा होती है-पन्द्रह परिपूर्ण दिन रात । उत्कृष्ट आरोपणा होती है-१६० दिन रात दोनों में अर्थात् स्थापना और आरोपणा में पांच-पांच का प्रक्षेपण करना चाहिए।
३६०. पंचण्डं परिवुडी, ओवड्डी चेव होति पंचन्हं । एतेण पमाणेणं, नेयव्यं जाव चरिमं ति ।। स्थापना और आरोपणा के जघन्यपद से आरंभ कर उत्तरोत्तर पांच की परिवृद्धि से अंतिम पद तक अर्थात् तीसवें पद तक पहुंचना चाहिए। उसी प्रकार अंतिम स्थापना पद और आरोपणा पद से पांच-पांच की अपकृष्टि हानि करते हु पहले पद तक पहुंचना चाहिए।
३६१. जा ठवणा उद्दिट्ठा,
छम्मासा ऊणगा भवे ताए । नायव्वा ।।
आरोवण उक्कोसा तीसे ठवणाय जिस स्थापना की हम उत्कृष्ट आरोपणा जानना चाहते हैं उसे उद्दिष्टा स्थापना कहा जाता है। उतने दिन छह मास के दिनों से न्यून करने पर वह उत्कृष्ट आरोपणा उस स्थापना की जाननी चाहिए। जैसे- बीस दिनों की स्थापना की उत्कृष्ट आरोपणा जानना चाहते हैं। छह मास के १८० दिनों में से बीस दिन निकालने पर १६० दिन की उत्कृष्ट आरोपणा हुई (उत्कृष्ट आरोपणा को जानने के लिए यही विधि है ।) ३६२. आरोवण उद्दिट्ठा, छम्मासा ऊणगा भवे ताए । आरोवणाइ तीसे, ठवणा उक्कोसिया होति ।। जिस आरोपणा की उत्कृष्ट स्थापना जानना चाहते हैं उसे उद्दिष्टा आरोपणा कहा जाता है उतने दिन छह मास के दिनों से EL
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१. इसका तात्पर्य है - स्थापना की जघन्य स्थापना बीस दिन की। उसमें पंचक का प्रक्षेप करने पर दूसरी स्थापना २५ दिन की, उसमें पंचक का प्रक्षेप करने पर तीसरी स्थापना ३० दिन की, इस प्रकार पांचपांच की वृद्धि करते हुए १६५ दिन-रात प्रमाण की तीसवीं स्थापना तक पहुंचना चाहिए। इसी प्रकार प्रथम आरोपणा स्थान पक्ष प्रमाण, इसमें पंचक का क्षेप करने पर बीस दिन प्रमाण का दूसरा, उसमें पंचक का क्षेप करने पर २५ दिन प्रमाण का तीसरा, इसी प्रकार आगे से आगे पांच-पांच का प्रक्षेप करते हुए १६० दिन प्रमाण का तीसवां आरोपणा प्रमाण प्राप्त होता है ।
२. विधि - पहला स्थापना स्थान है २० दिनों का तो आरोपणा स्थान तीस दिनों का होगा। स्थापना दिनों की पांच-पांच की वृद्धि के
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न्यून करने पर उस आरोपणा की उत्कृष्ट स्थापना ज्ञात होती है। जैसे- १५ दिनों की आरोपणा की उत्कृष्ट स्थापना (१८०-१५) १६५ दिनों की होती है (यही विधि सर्वत्र है।)
३६३. तीसं ठवणाठाणा, तीसं आरोवणाय ठाणाई। ठवणाणं संबेधो, चत्तारिसया तु पण्णट्ठा ।।
तीस स्थापनास्थान हैं और तीस आरोपणास्थान हैं। स्थापनास्थानों का आरोपणास्थानों के साथ संवेध-संयोग ४६५ होते हैं।
३६४. गच्छ्रुत्तरसंवग्गे, उत्तरहीणम्मि पक्खिवे आदी ।
अंतिमधणमाविजुयं गच्छचगुणं तु सव्वधणं ।। गच्छ का अंक है ३० । उत्तर अर्थात् एक से संवर्ग-गुणन करने पर ३० का अंक ही आया। उसमें एक न्यून करने पर २९ आए उसमें आदि का एक अंक प्रक्षिप्त करें। पुनः ३० हो गये। यह अंतिम अंक स्थान है। इसमें आदि का एक मिलाने पर ३१ हुए। गच्छ का आधा करने पर १५ आये। इसको ३१ से गुणा करने पर ४६५ की संख्या प्राप्त होती है।
३६५. दो रासी ठावेज्जा, रूवं पुण पक्खिवेहि एगत्तो । जत्तो य देति अद्धं, तेण गुणं जाण संकलियं ।।
( अथवा गणित का यह दूसरा प्रकार है । ) दो राशियों (गच्छों) की स्थापना करें - ३०/३० । एक राशि में रूप (एक) का प्रक्षेप करें । ३१ हुए। जिस राशि से आधा होता है उसे ग्रहण करना है, यह १५ हुए। इतर राशि के साथ गुणन करने पर (३१×१५) ४६५ हुए वह संकलित राशि होती है। ३६६. आसीता दिवससया, दिवसा पढमाण ठेवणरुवणाणं । सोधितुत्तरभइए, ठाणा दो पि रुवजुता ।। छह महीनों के १८० दिन होते हैं। प्रथम स्थापना और आरोपणा के दिनों को इन दिनों में से शोधित करने पर जो राशि लब्ध हो उसको उत्तर से भाजित करने पर रूपयुत स्थापना
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साथ-साथ आरोपणा स्थानों में एक-एक की कमी होगी। इस प्रकार तीसवां स्थापना स्थान १६५ दिनों का होगा तब आरोपणा स्थान एक दिन का होगा। सभी आरोपणा स्थानों को मिलाने पर (३०+२९+२८+२७+२६ से लेकर एक तक) ४६५ की संख्या होगी। इसी प्रकार पहला आरोपणा स्थान १५ दिनों का तो स्थापना स्थान तीस दिनों का होगा। आरोपणा स्थानों की पांच-पांच की वृद्धि के साथ-साथ स्थापना दिनों में एक-एक की कमी होने पर तीसवां आरोपणा स्थान १६० दिन प्रमाण का तो स्थापना स्थान एक दिन का। सभी स्थापना स्थानों को मिलाने पर ४६५ की संख्या होगी।
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